हिसार,
भारतीय संस्कृति का मूल तत्व है समन्वय साधना अर्थात प्रत्येक परिस्थिति में सामंजस्य एवं एकता को बनाये रखना। इसके साथ ही सकारात्मक सोच के आधार पर कार्य करने से बड़ी-से-बड़ी आपदाओं का निराकरण भी हो जाता है। ये बात कोरोना वैश्विक महामारी पर अंकुश लगाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पूरे देश में 21 दिनों का सम्पूर्ण लॉकडाउन करने की घोषणा के सन्दर्भ में आनंद मार्गी अध्यात्मिक गुरु आचार्य करुणानन्द अवधूत ने कही। उन्होंने बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा कि हमारी संस्कृति, सभ्यता, सोच व संकल्प मानवीय मूल्यों को सुरक्षा के लिए सदैव समर्पित रहा है। यही कारण है कि ‘वासुधैव कुटुम्बकम’ तथा ‘सर्वे भवन्तु सुखिनि’ की कामना हमारी संस्कृति का परिचायक रही हैं। 5000 ई. पूर्व सिन्धु घाटी की सभ्यता एवं ऋगवेद की प्राचीन लिखित ग्रन्थ के रूप में आज भी अनदेखे है। संस्कृति एकता के कारण ही हमारा देश अतीत में अनेक कठिन से कठिन परिस्थितियों का सामना कर सका तथा आज भी कर रहा है और भविष्य में भी कर सकेगा। उन्होंने कहा कि उन्होंने 19 वर्षों में 90 के करीब देशों की यात्रा की है और जाना है कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता पूरे विश्व में सबसे उत्तम है। उन्होंने कहा कि सच्चे मन से की गयी साधना कभी व्यर्थ नहीं जाया करती, यह एक जानामाना व प्रायोगिक सत्य है। विश्व के सबसे युवा देश को इस महाआपदा के समय घबराने की आवश्यकता नहीं हैं, बल्कि अपनी सकारात्मक सोच के द्वारा प्रतिकूल परिस्थिति में कूल रहकर अपने अनुकूल बनाने का प्रयास करना होगा। यहां पर अब आपके संयम, नियम, प्रबन्धन, कौशल, दक्षता, प्रवीणता एवं अध्यात्म की परीक्षा का कार्यकाल शुरू हुआ है। प्रधानमंत्री के इस आह्वान को विशेष तरजीह देने की जरूरत है। साथ ही उन्होंने कहा कि सकारात्मक सोच के साथ यज्ञ, हवन व भजन-कीर्तन करने से जो सकारात्मक ऊर्जा निकलती है वो बड़ी से बड़ी कठिनाई से उबार सकती है। ऐसे ही सकारात्मक सोच के साथ घर में रहते हुए ही अध्यात्मिक कार्य किये जायें और भारत सरकार के नियमों को माना जाये तो कोरोना से भी निपटा जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह सच है कि कितनी भी कठिनाई आये, इस तपस्या व त्याग को संयम व अनुशासन के साथ इसलिए पूरा करना होगा, क्योंकि यह राष्ट्र एवं मानवता के जीवन-मरण का प्रश्न पैदा हो गया है। अपनी सभ्यता, संस्कृति एवं संकल्प-शक्ति को साश्वत रखते हुए, हम सभी को सामूहिक रूप से ध्यान देना होगा और अपने धैर्य की परीक्षा में पास होना होगा।
आचार्य करूणानन्द अवधूत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि उन्हें दृढ़ विश्वास है भारतीय संस्कृति का चंदन सम्पूर्ण विश्व की मानव संस्कृति में आ गयी दुर्गन्ध को भी एक दिन दूर करने में समर्थ होगा। अपनी सामर्थय से अतीत में इसने जिस प्रकार से मानवता की सुरक्षा व समृद्धि की है, भविष्य में भी कर सकने में समर्थ होगा, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। ‘हम होंगे कायमयाब एक दिन’ ऐसा है विश्वास।