कुछ इन्सानों में अपनी खुद की कला होती है जिसके सहारे वो अपनी रोजी रोटी कमा लेता है और खुद के अलावा अपने परिवार का गुजारा कर लेता है। ऐसा नही है इस कला सभी लोग पेट भरते हो। कईयों ने तो इसके सहारे करोड़ों कमाए भी है और वो सालों तक घर बैठकर भी खा सकते है लेकिन उनकी संख्या बहुत कम है जबकि अधिकतर ऐसे लोग है जो रोज कुआं खोदकर भी पानी पीते है। इन लोगों के लिए अभी किसी सरकार ने कोई फैसला नही लिया है। पिछले दो महीनों से लगातार घर बैठे ये लोग किसके सहारे अपनी रोजी रोटी चला रहे होंगे। हम बात कर रहे है ऐसे कलाकारों की जिसमें गायक, डांसर,कथा वाचक नाटककार, हास्य कलाकार, विभिन्न कार्यक्रमों में म्यूजिक यानी साजबाज बजाने वाले, मंच का संचालन करने वाले आदि शामिल है। इन लोगों के साथ शादी-विवाह, जागरण व कथाओं में दरबार सजाने वाले, साउंड चलाने वाले, शादी विवाह में बैंड बजाने वाले, डीजे वाले शामिल है। जागरण, कीर्तन, रागनी आदि कार्यक्रम में अपनी आवाज से श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर अपना पेट पालने वाले लोगों के लिए वैश्विक महामारी कोरोना एक अभिशाप बनकर आई है। दो महीनों से इन लोगों के लिए रोजी रोटी का संकट गहरा गया है। मैंने अभी तक सुना नही किसी सरकार ने किसी प्रदेश में इनकी सुनी है। सरकारों ने इस वर्ग को किसी वर्ग में नही रखा है। महामारी से पहले ये लोग अपना बेहतर गुजारा चला रहे थे लेेकिन कोरोना वारयस ने इन लोगों को सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया है और रोजी रोटी को तरस गए है। हालांकि इस धंधे में आए कुछ गिने चुने कलाकारों ने करोड़ों कमाकर सालों का धन भी बटोर लिया है लेकिन बाकी लोग बैठकर एक महीना भी नही खा सकते है। ऐसा भी नही है कि सरकारों को इन लोगों के बारे में जानकारी नही है परन्तु इन लोगों की अभी तक कोई सुनने आगे आया नही है। इन लोगों को कोई अन्य काम भी नही आता है जिसके सहारे ये अपना गुजारा कर सके। कोई रात को जागरण में म्यूजिक देकर रोजी रोटी कमा रहा था तो कोई भजन प्रस्तुत कर दिहाड़ी कमा रहा था तो कोई इस कार्यक्रम में दरबार सजाकर अपना काम काज चला रहा था लेकिन अब ये लोग कहा जाए।
सांस्कृतिक कार्यक्रम, जागरण व रागनी बंद हो गायकों की रोजी रोटी गई। इन्हीं कार्यक्रमों के साथ साजबाज वालों का भी धंधा चौपट। शादी-विवाहों का छोटा रूप होने से बैंड बाजों वालों का, डीजे वालों का, लाइट वालों का, टैंट वालों का सहित अनेक धंधों को कोरोना ने अपनी चपेट में ले लिया और इसकी कोई समय सीमा भी नही है कि इन लोगों के धंधे कब शुरू हो पाएंगे। सरकारों को रोजी रोटी के लिए इन लोगों को भी किसी वर्ग में लेकर मदद करने के लिए प्रयास करने चाहिए। कोरोना के चलते इन लोगों की स्थिति दयनीय होती जा रही है। सरकार को ऐसे लोगों की देश भर में उपमंडल स्तर पर एक सूची बनानी चाहिए और इसे किसी अलग वर्ग में शामिल किया जाना चाहिए और इस वर्ग की अलग से मदद करनी चाहिए। सभी सरकारों को इन लोगों के बारे एक नीति बनाकर इनकी मदद करने के लिए आगे आना चाहिए अन्यथा अगर कुछ दिन लॉकडाउन ओर रहा इन लोगों की स्थिति देश में सबसे कमजोर होगी। ये भी सत्य है कि ये शब्द कई महीनों बाद ही सुनने को मिलेगा कि इस कार्यक्रम में अधिक से अधिक संख्या में पहुंचकर कार्यक्रम की शोभा बढ़ाए क्योंकि इन्हीं कार्यक्रम में इन लोगों की रोजी रोटी छीपी है।
सुभाष पंवार
सिवानी मंडी