फतेहाबाद,
इस बार जिला में 4705 किसानों ने 12800 एकड़ भूमि में धान की फसल न लगाकर कम पानी की अधिक पैदावार वाली अन्य फसलों की बिजाई की है। बुधवार को उपायुक्त डॉ. नरहरि सिंह बांगड़ पंचायत संसाधन केंद्र में मेरा पानी-मेरी विरासत योजना के तहत आयोजित एक दिवसीय किसान सेमिनार को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भू-जल स्तर निरंतर गिरता जा रहा है। इसलिए किसान ऐसी फसलें लगाएं, जिनमें सिंचाई के लिए कम पानी की जरूरत हो।
उपायुक्त ने कपास, मक्का, फल, फूल, दाल, तिलहन एवं बागवानी व फसल विविधिकरण अपनाने वाले किसानों को बधाई देते हुए कहा कि फसल विविधिकरण अपनाने से किसानों को निश्चित तौर पर लाभ होगा। उन्होंने कहा कि फसल विविधिकरण अपनाने वाले किसानों की राजस्व व कृषि विभाग द्वारा वेरीफिकेशन की जा रही है। वेरीफिकेशन का कार्य पूर्ण होते ही इन किसानों को मेरा पानी-मेरी विरासत योजना के तहत 7 हजार रुपये प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। उपायुक्त ने कहा कि धान की सीधी बिजाई करने से 25 से 30 प्रतिशत तक पानी की बचत होती है। इस बिजाई से धान की फसल में पानी खड़ा करने की जरूरत नहीं है। इस बार जिला में 4 हजार एकड़ भूमि में सीधी बिजाई की गई है। धान की सीधी बिजाई (डीएसआर) करने वाले किसानों को 50 प्रतिशत अनुदान पर कृषि यंत्र/मशीन उपलब्ध करवाई जाती है, जिसके लिए किसान को कृषि पोर्टल पर आवेदन करना होता है। उन्होंने कहा कि जिला में कृषि विभाग के पास एक मशीन भी उपलब्ध है जो किसानों को निशुल्क उपलब्ध करवाई जा रही है।
उपायुक्त ने कहा कि मेरा पानी-मेरी विरासत योजना के अंतर्गत किसान अपनी इच्छानुसार कपास, बाजरा, दलहन, गन्ना, सब्जियां और फलों की खेती कर सकते हैं। उन्होंने किसानों से धान के स्थान पर अन्य वैकल्पिक फसलों की बुआई करने की अपील की और कहा कि सरकार फसल विविधिकरण अपनाने वाले किसानों को 7 हजार रुपये प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि देगी। उन्होंने कहा कि वे जल सरंक्षण के लिए सरकार द्वारा लागू की गई योजना का लाभ उठाएं। उन्होंने कहा कि क्षेत्र का भू-जल स्तर नीचे जाना, हमारे लिए चिंतनीय और सोचने का विषय है। उन्होंने बताया कि अगर पानी ऐसे ही नीचे जाता रहा तो आने वाली पीढिय़ों के लिए काफी नुकसानदायक होगा।
इस अवसर पर कृषि विभाग के उप निदेशक डॉ राजेश सिहाग, डॉ संतोष कुमार, डॉ संदीप भाकर, एसडीओ भीम सिंह, बीईओ अनूप सिंह, सुभाष भांभू, अर्जुन पूनिया आदि विशेषज्ञों ने विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि हमारे वैज्ञानिक समय-समय पर कृषि संबंधी समस्या के समाधान व भविष्य में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए अनुसंधान करके किसानों को विभिन्न सिफारिशें करते रहते हैं। किसान फसलों में विविधिकरण करके उत्तम किस्म की सिफारिश की गई फसलों की किस्मों को अपनाकर, बदलती हुई जलवायु अनुरूप उत्तम गुणवता वाली विकसित की गई किस्मों को अपनाकर, जल व बिगड़ते हुए मृदा स्वास्थ्य के संरक्षण हेतु नई तकनीकों व टपका सिंचाई, जैविक खेती, टिकाऊ कृषि उत्पादन आदि को अपनाकर अपनी आय को बढ़ा सकते हैं। उन्होंने बताया कि खरीफ फसलों की कार्यशाला प्रतिवर्ष मार्च-अप्रैल में की जाती है। इन कार्यशालाओं में धान, बासमती चावल की खेती, बाजरा, मक्की, कपास, गन्ना व ग्वार, मूंगफली, तिल, अरण्ड, मूंग, उड़द, लोबिया, मोठ, अरहर व सोयाबीन,ज्वार, मकचरी, बाजरा, लोबिया, ग्वार, संकर हाथ घास, पोपलर, सफेदा, बबूल, शीशम, नीम, राहिड़ा, खेजड़ी व महानीम तथा औषधीय व सुगंधित पौधे रोशाघास, मुलहटी, खुम्बी आदि की किस्मों, कृषि क्रियाएं, कीड़े, बीमारियां व उनकी रोकथाम के संबंध में सिफारिशें की जाती हैं।
पशुपालन विभाग ने स्थापित किया जिला स्तर का बाढ़ नियंत्रण कक्ष
उपायुक्त डॉ नरहरि सिंह बांगड़ के आदेशों की पालना में जिला में पशुपालन एवं डेयरी विभाग द्वारा जिला स्तर का बाढ़ नियंत्रण कक्ष शुरू किया कर दिया गया है, जिसका दूरभाष नंबर 01667-297223 है। यह जानकारी देते हुए पशुपालन एवं डेयरी विभाग के उप निदेशक डॉ काशीराम ने बताया कि जिला में 51 पशु चिकित्सकों के नेतृत्व में 51 बाढ़ राहत टीमें बनाई गयी है जो किसी भी प्रकार की आपात स्थिति में पशुओं के इलाज हेतु तैयार रहेंगी। वर्षा ऋतु के प्रारंभ से पूर्व ही इस विभाग द्वारा 3 लाख 30 खुराक गलघोटू व मुंहखुर वैक्सीन लगाई जा चुकी है। जिला की सभी 60 गौशालाओं व नंदीशालाओं में भी वैक्सीन की जा चुकी है। जिला के सभी पशु चिकित्सालयों में पर्याप्त मात्रा में दवाईयों व वैक्सीन का प्रबंध भी किया है।