फतेहाबाद

धृतराष्ट्र’ के राज में “संजय ” हुआ मालामाल, मनोहर तक पहुंच गई पुकार

फ़तेहाबाद (साहिल रुखाया)
लोग कहते थे कि कोरोना काल में आदमी की सोच में बदलाव आया है। अब वह मोह माया की पीछे अधिक नहीं भागेगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। बीमारी लगातार बढ़ रही है। इसी भयंकर वातावरण में अधिकारियों ने रोजगार देने वाले व्यवसायियों को मंजूरी देने के नाम पर गड़बड़ी कर दी। बेशक अभी तक उन्होंने इसकी लिखित में शिकायत तो नहीं दी है, लेकिन लॉकडाउन के दौरान अपनी फैक्ट्रियों को खोलने के लिए जो कीमत उन्हें चुकानी पड़ी है, उसके बारे में वह न तो खुलकर किसी से जिक्र कर सकते हैं और न ही बात पर पर्दा डाल सकते हैं, क्योंकि शहर में उनके द्वारा दिए गए नजराने की चर्चा आम हो गई।

परेशानी ऐसी की मंदी की मार झेल रहे छोटे उद्योग संचालकों को चंद अधिकारियों ने खूब परेशान किया। लॉकडाउन में फैक्ट्री का संचालन करने वालों पर लालफिताशाही बड़ी हावी रही। समाज के प्रबुद्ध नागरिक समझे जाने वाले इन व्यवसायियों को अधिकारियों ने नाको चन्ने चबवा दिए। एक तो पहले रॉ मेटिरियल महंगा हुआ पड़ा है, ऐसे में हद तो तब हो गई जब एक अधिकारी अक्सर कहता है कि उनके पास भगवान का दिया सब कुछ है वे तो यह नौकरी सिर्फ समाजसेवा के लिए कर रहे है। इस बहाने समय सही बीत जाता है। परंतु कोरोना काल में इस कथित लैंडलाॅर्ड अधिकारी द्वारा खूब माल बटोरने की शिकायत व्यवसायी तो नहीं कर पाए, लेकिन सत्ता दल व उसके संगठन के जुड़े लोग मुख्यमंत्री मनोहर लाल तक कर चुके है। करें भी क्यों न.. संगठन से जुड़े व्यक्ति को भी मंजूरी के लिए नजराना देना पड़ा।

वैसे जिले में राइस मिल, कॉटन फैक्ट्री, बिस्कूट, जूता के साथ पाइप फैक्ट्री का प्रमुख व्यवसाय है। राइस मिल तो कृषि से जुड़ी होने के चलते लॉकडाउन में पहले ही चलाने की छूट मिल गई। पाइप फैक्ट्री वाला व्यवसाय भी किसान से जुड़ा काम है। किसान ही इनसे पाइप खरीदते है, लेकिन कोरोना काल में इनको ही फैक्ट्री शुरू करवाने के लिए बड़ी परेशानी आई। बताया जाता है कि मुख्यमंत्री ने बड़े अधिकारी का तबादला कर दिया है, लेकिन लैंडलाॅर्ड अधिकारी व उनके चहते टाइपिस्ट पर आंच नहीं आ रही है। इस अधिकारी के तार मंडी के बड़े सेठ जी से जुड़ा हुआ है। अधिकारी का टाइपिस्ट भी कम नहीं। 17 साल से फतेहाबाद में है। ऐसे में अब सत्ताधारी नेताओं की मांग है कि अधिकारी के तबादले के साथ उस टाइपिस्ट का भी तबादला हो, तभी कुछ सुधार होगा।

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Jeewan Aadhar Editor Desk