लॉकडाउन में प्रवासियों की पीड़ा से मन व्यथित हुआ, पर टीम की मजबूती से मिला हौसला
हिसार उपायुक्त डॉ. प्रियंका सोनी ने विशेष बातचीत में सांझा की मन की बात
हिसार, (राजेश्वर बैनीवाल)।
उपायुक्त के रूप में प्रशासनिक जिम्मेदारियों, मां के रूप में दो साल के बच्चे के लालन-पालन और कोरोना संकट के दौर में अपने दायित्वों के निर्वहन में दिन-रात जुटीं रहने वाली आईएएस डॉ. प्रियंका सोनी मानती हैं कि कोरोना के कारण हम सबके जीवन में काफी परिवर्तन आए हैं। कोरोना ने एक-दूसरे से घुल-मिलकर रहने की भारतीय संस्कृति में सामाजिक दूरी रखने की एक नई अनिवार्यता पैदा की है, घर से बाहर निकलने से पहले मास्क याद आता है और घर में घुसते ही हाथ धोना।
उपायुक्त डॉ. प्रियंका सोनी आज एक विशेष बातचीत में अपने जीवन, करियर, दिनचर्या और कोरोना संकट जैसे विविध विषयों पर मन की बात साझा कर रही थीं। उन्होंने प्रत्येक पहलु पर खुलकर बात की और स्वयं को एक आम महिला बताते हुए महिलाओं की मजबूती और सुरक्षा के लिए कुछ नया करने का जज्बा बयां किया। आईएएस के रूप में बुुजुर्गों, महिलाओं और लड़कियों की मदद के लिए चर्चित रहीं डॉ. प्रियंका सोनी कहती हैं कि मैं सेवा के जज्बे के साथ सिविल सर्विस में आई और हर कदम देश व समाज के लिए समर्पित रहूंगी।
अपने जीवन के बारे में बात करते हुए डॉ. प्रियंका सोनी ने बताया कि उनका जन्म राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के सूरतगढ़ शहर में हुआ और यहीं प्रारंभिक शिक्षा पूरी की। इसके पश्चात आगे की पढ़ाई उन्होंने कोटा से की और एसएमएस मेडिकल कॉलेज से डॉक्टरी (एमबीबीएस) की पढ़ाई की। कुछ समय अस्पताल में चिकित्सक के रूप में सेवाएं देने के बाद इन्होंने राष्ट्र व समाज की सेवा के मंच को विस्तार देने के लिए सिविल सर्विस में जाने का फैसला किया और प्रथम प्रयास में ही इसके लिए चुन ली गईं। वे कहती हैं कि वर्तमान में चल रही कोरोना त्रासदी को देखते हुए महसूस कर पा रही हूं कि जितनी सेवा एक आईएएस के रूप में कर पा रही हूं उतनी शायद एक चिकित्सक के रूप में भी नहीं कर पाती।
वर्ष 2014 से हरियाणा में पोस्टिड डॉ. प्रियंका सोनी ने विभिन्न जिलों में एसडीएम, अतिरिक्त उपायुक्त, नगर निगम आयुक्त व उपायुक्त जैसे महत्वपूर्ण पदों पर सेवाएं दी हैं। वे कहती हैं कि कैथल में उपायुक्त के रूप में हमने कॉलेज की लड़कियों व महिलाओं के हित में अनेक कार्य किए जिनकी चर्चा प्रदेश ही नहीं, पूरे देश में हुई। हिसार में भी महिलाओं की सोच बदलने व उन्हें समाज में सकारात्मक भूमिका निभाने को तैयार करने के लिए एक सार्थक प्रयास किया गया है। इसके तहत ग्रामीण अंचल व पिछड़े क्षेत्रों की सैकड़ों महिलाओं (जिनकी केवल बेटियां है) के लिए फिल्म फेस्टिवल का आयोजन किया गया जिसमें उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में अदम्य साहस का परिचय देने वाली महिलाओं पर आधारित फिल्में दिखाई गईं। इनमें अनेक महिलाएं तो ऐसी भी थीं जो जीवन में पहली बार सिनेमा देखने आई थीं। महिलाओं ने फिल्म फेस्टिवल में न केवल उत्साह से भागीदारी की बल्कि इससे उन्होंने बेटियों के प्रति साकारात्मक बदलाव भी महसूस किया।
उपायुक्त डॉ. प्रियंका सोनी के पति डॉ. आदित्य दहिया भी आईएएस हैं और आजकल जींद जिले में उपायुक्त के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। डॉ. प्रियंका सोनी का दो साल का बेटा आर्यन भी है जो उनके साथ हिसार ही रहता है। पारिवारिक जीवन में संतुलन बनाने के सवाल पर डॉ. सोनी बताती हैं कि पति से दूर तो रहती हूं लेकिन आईटी के साधनों जैसे वीडियो कॉल आदि के माध्यम से बात होती रहती है तो ज्यादा महसूस नहीं होता है।
वर्तमान में चल रहे कोरोना संकट का जीवन पर पड़े प्रभाव के संबंध में बातचीत करते हुए डॉ. प्रियंका सोनी ने बताया कि कोरोना से बचने के लिए आवश्यक सावधानियां अपनाने से सामान्य दिनचर्या से लेकर घर में मेहमान आने की स्थिति तक में काफी बदलाव आए हैं। भारतीय संस्कृति में एक-दूसरे से घुल-मिलकर रहने की आदतें होती हैं लेकिन अब सोशल डिस्टेंसिंग के नियम के कारण एक-दूसरे से शारीरिक दूरी बनाकर रखना समय की जरूरत हो गई है। सुबह घर से बाहर निकलते समय अब हमें मास्क याद रहने लगा है और दिन में जाने कितनी बार सैनेटाइजर से हाथ साफ करना भी हम नहीं भूलते हैं। इसके साथ ही घर पर भी बार-बार हाथ धोने की आदत विकसित हो गई है। एक तरह से स्वच्छता की यह आदत भविष्य में देशवासियों की जीवनशैली में बड़ा बदलाव लाएगी। कोरोना के बाद हमारी स्वास्थ्य प्रणाली भी नए अवतार में सामने होगी जो पहले से काफी मजबूत और सुदृढ़ होगी।
हिसार उपायुक्त के रूप में अच्छे व बुरे अनुभव के बारे में पूछने पर डॉ. सोनी कहती हैं कि हिसार में कार्यभार संभालते ही कोरोना संकट का दौर शुरू हो गया। सभी अधिकारियों से अच्छी प्रकार परिचय तक नहीं हुआ था, लेकिन यहां के प्रशासनिक अधिकारियों की टीम ने जिस प्रकार मोर्चा संभाला और मेरा सहयोग किया, उस भावना को मैं कभी नहीं भुला पाऊंगी। हिसार की टीम ने जिला को कोरोना से बचाने के लिए मेरे हर निर्णय को इतनी सफलता के साथ क्रियान्वित किया कि कई बार तो मैं खुद हैरान रह जाती थी। कोरोना के मद्देनजर जिला नियंत्रण कक्ष में प्रवासी श्रमिकों की कॉल आती थीं तो उनके हालात देखकर मन बहुत दुखी होता था। हमने उनकी मदद करने और उन्हें राहत दिलाने की हर संभव कोशिश भी की। जिलावासियों ने भी हर कदम पर मेरा साथ दिया है और कोरोना सहित हर मुद्दे पर उनके सहयोग के कारण ही मैं काम और परिवार के बीच सामंजस्य बना पाई हूं।