खेत—खलिहान जीवनशैली हिसार

पौधारोपण का विचार आया तो प्लास्टिक के डिब्बे काटकर बना दिये गमले

पनिहार निवासी सोमवीर बैनीवाल बना अनोखा प्रकृति प्रेमी, कार्यालय के आसपास किया पौधारोण

हिसार, (राजेश्वर बैनीवाल)।
मार्च-अप्रैल में चले लॉकडाउन के दौरान जहां पूरा देश बंद रहा वहीं वातावरण में अनोखा सुधार हुआ। वायु प्रदूषण में कमी आई वहीं पेड़-पौधे खिल उठे। इससे हर व्यक्ति के मन में यह धारणा भी उत्पन्न हुई कि हमें प्रकृति के नजदीक रहना चाहिए और पेड़-पौधे लगाकर उनकी संभाल करनी चाहिए। इसी से सीख लेते हुए पनिहार निवासी सोमवीर बैनीवाल ने अपने कार्यालय के आसपास ऐसे तरीके से पौधारोपण किया कि देखने वाला भी अचंभित रह जाए।
जी हां, पनिहार निवासी एवं जाट धर्मशाला कॉम्पलैक्स में प्रोपर्टी का काम करने वालेे सोमवीर बैनीवाल ने पौधारोपण का ऐसा उदाहरण पेश किया है, जो हर किसी को अपनी तरफ आकर्षित कर रहा है। सोमवीर ने जैसे ही पौधारोपण की सोची तो कार्यालय के आसपास गमले रखने की उचित जगह न होने तथा रख देने की हालत में उनके सुरक्षित न रहने की चिंता उन्हें सताने लगी। इसी के चलते उनके मन में अनोखा विचार आया और उन्होंने अपने जानकार मिस्त्री से संपर्क किया। मिस्त्री से उन्होंने मोबिल ऑयल व अन्य तरह के प्लास्टिक के डिब्बे लिये और उनको नीचे की तरफ से काटकर ड्रिल की सहायता से दीवार पर लटका दिया और उनमें पौधे लगा दिये।
लगभग 10-15 दिन पहले सोमवीर द्वारा लगाए गये पौधे सही ढंग से लहलहा रहे हैं। सोमवीर हर रोज दो-तीन टाइम इनकी देखभाल करते हैं और जरूरी खाद-पानी देते हैं। इन पौधों में कुछ फूल वाले पौधे है वहीं कुछ औषधीय पौधे भी है। पौधों की सार-संभाल के लिए सोमवीर विशेेष समय निकालते हैं। आसपास के सभी लोगों ने सोमवीर के इस कार्य की प्रशंसा की है और उनके इस कार्य को दूसरों के लिए भी प्रेरित करने वाला बताया है।
इस संबंध में सोमवीर का कहना है कि मनुष्य को प्रकृति प्रेमी बनना चाहिए। आज हम कोरोना जैसी महामारी झेल रहे हैं, वह प्रकृति से दूर रहने का ही नतीजा है। प्रकृति के साथ जुडक़र ही हम खुद को व वातावरण को शुद्ध रख सकते हैं वहीं खुद को व्यस्त रखकर अनावश्यक विवादों से भी बचे रह सकते हैं। उन्होंने कहा कि यदि हम प्रकृति के नजदीक रहेंगे तो प्रकृति हमें दोगुना फायदा लौटाएगी। उन्होंने कहा युवा वर्ग को चाहिए कि वह आधुनिकता की आंधी में बहने की बजाय प्रकृति के साथ भी जुड़े रहें और अपने संस्कारों को न भूूलें।

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