हिसार,
बच्चों को उच्चस्तरीय गुणवतापरक शिक्षा देना सरकारी का दायित्व है और कोई भी सरकार इससे मुंह नहीं मोड सकती, परन्तु नई शिक्षा नीति में प्राईवेट शिक्षा में ज्यादा जोर दिया गया है। नई शिक्षा नीति में सरकारी स्कूलों की व्यवस्था पर कोई विशेष ध्यान न देकर सीधे—सीधे जिम्मेदारी से बचने का रास्ता निकाला गया है।
हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड के तत्कालीन सहायक सचिव जगदीश श्योराण ने नई शिक्षा नीति में अत्याधिक नियमन और निरीक्षण प्रणाली को भी अतार्किक और अव्यवहारिक बताते हुए आशंका प्रकट की है कि इससे भी उच्चस्तर पर टकराव बढेगा। शिक्षा के निरीक्षण व्यवस्था के लिए एक राज्य स्तर पर शिक्षा विभाग, एक निदेशालय, शिक्षा आयोग, रेगुलेटरी अथोरिटी, एससीईआरटी और शिक्षा बोर्ड नई शिक्षा नीति में निकाय होगें जो सारे नियमन और निरीक्षण का काम देखेंगे। इससे निरीक्षण और नियमन एजेंसियां आपस में ही उलझ कर रह जाएंगी। उन्होंने फिर से सेमैस्टर सिस्टम लागू करने, दसवीं बोर्ड की परीक्षाएं समाप्त करने पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए कहा कि यह प्रयोग पहले भी असफल हो चुके हैं और इससे शिक्षा के स्तर में गिरावट ही आएगी।
शिक्षा पर जीडीपी का 6 प्रतिशत खर्च करने की बात पहले भी 1966 में कोठारी कमीशन की रिपोर्ट में भी उल्लेख किया गया है परंतु यह तय नहीं किया गया कि यह खर्च किए प्रकार से किया जाएगा। इसी प्रकार से एनसीएफ 2005 को अब तक पूर्णरूप से लागू नहीं किया है और अब फिर से एनसीएफ 2022 की बात की जा रही है। उन्होंने नई शिक्षा नीति को भी पुरानी शिक्षा नीति से मिलता जुलता ही बताया।