हिसार

मैं डिस्पोजल हूं, इस्तेमाल के बाद क्यों सबकी आंखों से ओझल हूं ?

डिस्पोजल

मैं डिस्पोजल हूं,
मैं इस्तेमाल के बाद क्यों सबकी आंखों से ओझल हूं।
मैं डिस्पोजल हूं, मैं डिस्पोजल हूं, मैं डिस्पोजल हूं।

यह मेरा सवाल नहीं, मेरे ख्यालात नहीं,
मेरी पीड़ा, मेरा दर्द नहीं,ये तो बिल्कुल सच है,
मैं निरर्थक बहता, आंखों का खारा जल हूं।
मैं डिस्पोजल हूं,मैं डिस्पोजल हूं, मैं डिस्पोजल हूं।

मैं तुम्हारी गरज में उपभोग के समय तुम्हारी,
शोभा, शानो-शौकत और शोहरत बन जाती हूं।
आड़े नहीं आती, मेरी शक्ल-सूरत, रंग-रूप, मेरा धर्म
यहां तक कि मेरी जाति जिससे तुम सदियों से करते आए हों घृणा मानते आए हो तुच्छ।

सब कुछ भूल जाते हो तुम, भूल जाते हो अपनी मर्यादा भी।
कोई भी रिश्ता नहीं रोकता तुम्हारा रास्ता,
सब! सब कुछ ताक पर रखकर तुम वहशीपन पे उतरकर,
पागल दरिंदे की तरह नोचते हो मेरा जिस्म,
करते हो मेरा शिकार, बर्बाद कर देते हो मेरी जिंदगी, उजाड़ देते हो मेरा सब संसार,
मैं तुम्हारे द्वारा किया हुआ घृणित छल हूं।
मैं डिस्पोजल हूं, मैं डिस्पोजल हूं, मैं डिस्पोजल हूं।

तुम अपने आगोश में समा लेना चाहते हो मेरा बदन,
मेरा हर अंग तुम्हें देता है,
खुशी-आनन्द कि अलग-अलग अनुभूति,
चखना चाहते हो मेरे हर हिस्से को,
मिटाना चाहते हो अपनी हवस की भूख और तड़प,
मसलकर-रगड़कर मेरा शरीर,
पाना चाहते हो दैहिक सुख,
करना चाहते हो बस मेरा भोग!
पल भर में करके अपनी भूख को शांत,
बन जाते फिर से मर्यादा पुरुष।
दफना देना चाहते हो मुझे तुम ज़िन्दा, देखना नहीं चाहते अपनी आंखों के सामने।
ठूंस देते हो मेरे गुप्तांगों में पत्थर,
हत्या कर, बना देते हो आत्महत्या, डालकर गले में फंदा।
मिटा देना चाहते हो हर सबूत अपने करतूत का, खुद को निर्दोष साबित करने के लिए।
घंणी अंधेरी रात में जला देते हो मेरा मृत शरीर और अपना मरा हुआ जमीर।
तुम्हारे पास सब कुछ होते हुए भी मौत से भी खतरनाक है तुम्हारा डर,
जो तुम्हें बार-बार मार रहा है डरा-डरा कर।
मेरा मृत शरीर भी तुम्हें मौत तक ले जा सकता था मरा हुआ होते हुए भी,
तुम डरपोक हो कायर हो।
तोड़ देते हो मेरी रीढ़ की हड्डी और पैर ताकि मैं चल ना संकू,
काट देते मेरी जुबान ताकि मैं बोल ना संकू,
इस दोगले समाज ने मेरी इज्जत मेरे शरीर को माना है,
मुझे आज तक न्याय नहीं मिला,
सरकार, प्रशासन, कोर्ट-कचहरी, थाना सब मिलकर बचाने पे तुले हुए हैं उन दरिंदो को,
अब सवाल तुम से है क्या दिला सकोगे तुम मुझे न्याय, बन सकोगें मेरी आवाज़,
या फिर बस मोमबत्तियां जलाकर खुद का ही प्रस्तुतिकरण करके बैठ जाओगे शांत,
अपनी संस्था अपनी पार्टी एवं खुद की हाजरी दर्ज करवाके,
मेरी फोटो के सामने केवल मोमबत्ती ही मत जलाना,
मेरी काटी है जुबान पर तुम जरूर आवाज उठाना।
वरना हस्र बहुत बुरा होगा, इतिहास साक्षी है,
बदल दिए जाएंगे सब सबूत, सब गवाह मैं ही दिखूंगी तुम्हें दोषी,
मुझे भूल जाओगे लड़ोगे दुसरी तीसरी लड़ाई बस यहीं तक।
और मैं फिर! तुम्हारे लिए बेचारी और बीता हुआ कल हूं।

मैं डिस्पोजल हूं, मैं डिस्पोजल हूं, हां मैं डिस्पोजल हूं।

—सरदानन्द राजली
मोबाइल नंबर : 9416319388

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