एचएयू में फसल अवशेष प्रबंधन विषय पर तीन दिवसीय ऑनलाइन प्रशिक्षण का समापन
हिसार,
किसान फसलों के अवशेषों को जलाने की बजाय उनका आधुनिक तकनीकों व मशीनों के माध्यम से उचित प्रबंधन करें। इससे एक ओर जहां पर्यावरण को प्रदुषित होने से बचाया जा सकता है वहीं दूसरी ओर जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में भी मदद मिलती है।
यह आह्वान हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. आर.एस. हुड्डा ने सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण एवं शिक्षण संस्थान में ‘फसल अवशेष प्रबंधन’ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम के समापन अवसर पर प्रशिक्षणार्थियेां को संबोधित करते हुए किया। उन्होंने प्रशिक्षणार्थियों से आह्वान किया कि वे न केवल स्वयं बल्कि अन्य किसानों को भी इस बारे मेें अधिक से अधिक जागरूक करें और फसल अवशेष जलाने से होने वाले नुकसान के बारे में बताएं। सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण एवं शिक्षण संस्थान के सह-निदेशक डॉ. ए.के. गोदारा ने संस्थान द्वारा बेरोजगार युवाओं के लिए चलाए जाने वाले विभिन्न कौशल कार्यक्रमों की भी विस्तार से जानकारी दी और इस प्रशिक्षण के सफल आयोजन के लिए आयोजकों व प्रशिक्षणार्थियों की सराहना की।
धान की कम समय में पकने वाली किस्मों से भी कर सकते हैं प्रबंधन
क्षेत्रीय अनुसंधान संस्थान कौल(कैथल) के सहायक वैज्ञानिक डॉ. राकेश खरब ने प्रतिभागियों को धान की कम समय में पकने वाली किस्मों जैसे पुसा-1121, पुसा-1501 आदि को अपनाने की सलाह दी, क्योंकि इनमें फसलों के अवशेष कम होते हैं। कृषि विज्ञान केंद्र फतेहाबाद से जिला विस्तार विशेषज्ञ(मृदा विज्ञान) डॉ. संतोष कुमार सिंह ने फसलों के अवशेष को मिट्टी में मिलाने के लिए आधुनिक मशीनों व तकनीकों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि फसल अवशेषों को मिट्टी में मिलाने से भूमि की उर्वरा शक्ति में बढ़ोतरी होती है। सहायक निदेशक डॉ. निर्मल कुमार ने फसल अवशेषों को जलाने से होने वाले नुकसान को लेकर विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने फसल अवशेष प्रबंधन के विभिन्न लाभों के बारे में भी बताया। कार्यक्रम के संयोजक सहायक निदेशक(प्रशिक्षण)डॉ. संदीप भाकर ने बताया कि इस प्रशिक्षण में प्रदेश के विभिन्न जिलों के 30 प्रतिभागी शामिल हुए। इस दौरान प्रतिभागियों ने फसल अवशेष प्रबंधन को लेकर सवाल-जवाब भी किए जिनका बहुत ही बेहतर तरीके से वैज्ञानिकों द्वारा समाधान किया गया।