रामायण का इतिहास दोहराने पर तुले हैं प्रधानमंत्री
हिसार,
रामराज्य की बात करने वाली भाजपा का असली चेहरा सामने आ गया है। किसान सीता रूपी संपन्नता यानि तीन कानून छोड देने की गुहार लगा रहे हैं परंतु प्रधानमंत्री का रावण रूपी अहंकार हठधर्मिता पर है। प्रदेश के पूर्व वित्तमंत्री विभीषण की तरह नसीहत दे रहे हैं, देश के प्रधानमंत्री अपनी सत्ता रूपी लंका का खात्मा चाहते हैं। यदि रावण सीता हरण के बाद भी हालात को देखकर सीता की जिद छोड़ देता तो रावण की लंका न जलाई जाती। प्रधानमंत्री मोदी जी अहंकार वश सीता रूपी कानून पर अडे हुये हैं।
हरियाणा कांग्रेस लीगल डिपार्टमेंट के प्रदेश चेयरमैन अधिवक्ता लाल बहादुर खोवाल ने कहा कि जिस तरह से रावण ने सीता का हरण किया था और सीता को ना छोड़ने की एवज में पूरी लंका को जलवा दिया था। इसी तरह हमारे देश का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सरकार रूपी लंका को जलवा कर ही सीता रूपी कानूनों को वापस करेगा, क्योंकि आंदोलन को लेकर सरकार की बेरुखी एवं अहंकार के चलते अब तक 50 से अधिक किसान जान गवा चुके हैं। कुछ ने तो सरकार की उपेक्षा के चलते आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लिया है परंतु मोदी सरकार का न तो दिल पसीज रहा है और ना ही सता में बैठा कोई नेता सांत्वना देने पहुंच रहा है। आजादी के बाद देश के इतिहास में यह पहली ऐसी अहंकारी सरकार सत्ता में आई है जिसे देश का पेट भरने वाले अन्नदाताओं की पीड़ा और संघर्ष भी दिखाई नहीं दे रहा है। आज लगता है कि मुट्ठी भर उद्योगपति और उनका मुनाफा सुनिश्चित करना ही इस सरकार का मुख्य एजेंडा है। लोकतंत्र में जन भावनाओं की उपेक्षा करने वाली सरकारें और उनके नेता लंबे समय तक शासन कभी नहीं कर सकते। ठंड में बैठे किसानों को थकाओ और भगाओ की नीति पर केंद्र सरकार आज काम कर रही है लेकिन आंदोलनकारी धरतीपुत्र किसान एवं मजदूर घुटने टेकने वाला नहीं है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार को सत्ता का अहंकार छोड़कर बिना शर्त तीनों काले कानून तुरंत वापिस लेने चाहिए और किसानों का आंदोलन समाप्त करवाना चाहिए यही राज धर्म है और दिवंगत किसानों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि भी। खोवाल ने कहा कि प्रजातंत्र में लोगों के लिए कानून बनाया जाता है। इब्राहिम लिंकन ने भी कहा था कि आप सभी लोगों को कुछ समय के लिए मूर्ख बना सकते हो और थोड़े लोगों को हमेशा के लिए मूर्ख बना सकते हो लेकिन सभी लोगों को हमेशा के लिए मूर्ख नहीं बनाया जा सकता।