हिसार

संस्कारों व संस्कृति की रक्षक मातृभाषा हिंदी : कुलपति समर सिंह

एचएयू में अन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस एवं फणीश्वरनाथ रेनू जन्मशती समारोह आयोजित

हिसार,
किसी भी देश की मातृभाषा उस देश के संस्कारों व संस्कृति की रक्षक होती है। मातृभाषा के बिना किसी देश की संस्कृति की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। मातृभाषा देशप्रेम व राष्ट्रभावों को आपस में लडिय़ों की तरह जोड़ती है।
यह बात हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. समर सिंह ने विश्वविद्यालय के मौलिक विज्ञान व मानविकी महाविद्यालय के भाषा व हरियाणवी संस्कृति विभाग की ओर से आयोजित अन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस एवं फणीश्वरनाथ रेनू जन्मशती समारोह में को संबोधित करते हुए कही। कार्यक्रम में बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय रोहतक के कुलपति डॉ. रामसजन पांडेय व चौधरी बंसीलाल विश्वविद्यालय भिवानी से हिंदी विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ. बाबूराम मुख्य वक्ता के तौर पर उपस्थित थे। मुख्यातिथि ने कहा कि हमारे देश की जड़ों से जुड़े रहने के लिए मातृभाषा हिंदी बहुत जरूरी है। देश के विकास में इसकी अहम भूमिका होती है। मातृभाषा हिंदी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छा रही है। देश-विदेश के कोने-कोने से विद्यार्थी हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी को अपनाकर इस पर अनुसंधान कर रहे हैं। जल्द ही हमारा देश विश्वगुरू बनने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। कार्यक्रम के शुभारंभ अवसर पर महाविद्यालय के अधिष्ठाता प्रोफेसर राजवीर सिंह ने सभी मुख्यातिथियों का स्वागत करते हुए कार्यक्रम की रूपरेखा से अवगत कराया। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्जवलित कर कैंपस स्कूल की छात्राओं द्वारा सरस्वती वंदना से किया गया। भाषा एवं हरियाणवी संस्कृति विभाग की अध्यक्षा प्रोफेसर सुषमा आनंद ने अतिथियों का परिचय करवाया और कार्यक्रम आयोजन की महत्ता के बारे में बताया।
मातृभाषा अभिव्यक्ति का सबसे सरल माध्यम : डॉ. पांडेय
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय रोहतक के कुलपति डॉ. रामसजन पांडेय ने हिंदी भाषा के साहित्य के बारे में विस्तारपूर्वक चर्चा की। उन्होंने कहा कि मातृभाषा प्रत्येक मनुष्य के सुखों, दुखों, अभिव्यक्ति आदि को व्यक्त करने का सबसे सरल माध्यम होता है। हमें हिंदी भाषा अपनाने पर गर्व करना चाहिए और इसको अपनाने में किसी प्रकार की हीन भावना नहीं होनी चाहिए। हमें दूसरी भाषाओं का भी सम्मान करते हुए अपनी मातृभाषा व राष्ट्रभाषा को नहीं भूलना चाहिए। उन्होंने साहित्य का जिक्र करते हुए कहा कि यह हमें आत्मसम्मान व आत्मगौरव दिलाता है। यह हमें भय, संकोच और पराधीनता से ऊपर उठाता है। कार्यक्रम के दूसरे वक्ता चौधरी बंसीलाल विश्वविद्यालय भिवानी से हिंदी विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ. बाबूराम ने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण और दीपक दोनों है। दर्पण की तरह साहित्य समाज की वर्तमान दशा से अवगत कराता है तो दीपक की तरह जगह मार्गदर्शन करता है। उन्होंने फणीश्वरनाथ रेनू की जन्मशती के अवसर पर उनके जीवनकाल पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि रेणू जी आंचलिक साहित्यकार थे। उनके उपन्यास विश्व प्रसिद्ध हैं। उन्होंने कहा कि मां, मातृभाषा और मातृभूमि का कोई विकल्प नहीं हैं। इसलिए इन्हें कभी भी नहीं भूलना चाहिए। कार्यक्रम के समापन अवसर पर विभाग की पूर्व अध्यक्षा प्रोफेसर कृष्णा हुड्डा ने सभी का धन्यवाद किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. बीआर कंबोज, अनुसंधान निदेशक डॉ. एसके सहरावत, वित्त नियंत्रक नवीन जैन सहित सभी महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, विभागाध्यक्ष, कर्मचारी व विद्यार्थी मौजूद रहे।

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Jeewan Aadhar Editor Desk