धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—675

अयोध्या में भरत और राम का जो प्रेम था, वह केवल भाई–भाई का रिश्ता नहीं था, बल्कि त्याग, विश्वास और निस्वार्थ भाव का सर्वोच्च उदाहरण था। आधुनिक युग में भी यह कथा हमें गहरे संदेश देती है।

आज के समय में एक शहर में दो भाई रहते थे—आदित्य और विवेक। पिता के कारोबार को दोनों मिलकर संभालते थे। लेकिन जब पिता का देहांत हुआ, तो रिश्तेदारों ने संपत्ति बाँटने की बातें शुरू कर दीं। सबको लगा कि अब भाई आपस में लड़ पड़ेंगे।

पर हुआ उलटा। बड़े भाई आदित्य ने कहा— “भाई, यह घर, यह जमीन, यह कारोबार सब तेरा है। मुझे केवल इतना चाहिए कि तू मुझे अपने प्यार में शामिल रखे। मैं तुझ पर पूरा विश्वास करता हूँ।”

विवेक ने आँखों में आँसू भरकर कहा—“भैया, आपने जो दिया है वह अमूल्य है। पर मैं भी राम–भरत की तरह मानता हूँ कि आपके बिना यह सब बेकार है। संपत्ति चाहे एक के नाम हो, पर घर और दिल दोनों हमारे साझा हैं।”

यह सुनकर आसपास के लोग हैरान रह गए। जिन रिश्तेदारों को उम्मीद थी कि भाइयों के बीच दरार पड़ेगी, वहाँ उल्टा और गहरा प्रेम देखने को मिला।

राम और भरत का प्रेम हमें आज भी यही सिखाता है कि रिश्तों में अधिकार से अधिक महत्व त्याग और विश्वास का है। यदि भाई–भाई, दोस्त–दोस्त, या परिवार के सदस्य एक-दूसरे को निस्वार्थ भाव से अपनाएँ, तो कोई भी परिस्थिति उन्हें अलग नहीं कर सकती।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, आज के युग में जब लोग संपत्ति, नौकरी, या सफलता के कारण रिश्तों में दरार डाल देते हैं, तब राम–भरत का प्रेम हमें याद दिलाता है कि सच्चा सुख केवल निस्वार्थ रिश्तों में ही है।

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Jeewan Aadhar Editor Desk