एक बार की बात है, हिमालय की तलहटी में स्थित एक छोटे से आश्रम में एक युवा शिष्य अपने गुरु के पास पहुँचा। उसका चेहरा उदासी से भरा था।
शिष्य बोला, “गुरुदेव! मैं वर्षों से साधना कर रहा हूँ, पर न तो मन शांत होता है, न ही कोई फल दिखता है। क्या मेरी मेहनत व्यर्थ है?”
गुरु मुस्कुराए और बोले, “बेटा, आज तुम मेरे साथ चलो। तुम्हें तुम्हारे प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा।”
दोनों जंगल की ओर चल पड़े। कुछ दूरी पर एक बड़ा पत्थर पड़ा था। गुरु ने कहा, “इस पत्थर को देखो। इसे हर दिन नदी का पानी छूता है। क्या तुम जानते हो, यह पत्थर इतना चिकना कैसे हुआ?”
शिष्य ने उत्तर दिया, “शायद पानी की धार से?”
गुरु बोले, “सही कहा। पानी ने वर्षों तक इसे छुआ—धीरे-धीरे, बिना रुकावट, बिना क्रोध के। पानी ने न तो बल लगाया, न जल्दी की। बस निरंतर बहता रहा… और उसी धैर्य ने पत्थर को घिसकर सुंदर बना दिया।”
शिष्य ने ध्यान से पत्थर को देखा। उसके चेहरे पर हल्की चमक आ गई।
गुरु आगे बोले, “धैर्य वही शक्ति है जो असंभव को संभव बनाती है। जैसे यह पत्थर पानी के स्पर्श से रूप बदल गया, वैसे ही साधना और प्रयास भी समय के साथ फल देते हैं। लेकिन फल तभी मिलता है जब मन अधैर्य नहीं करता।”
शिष्य ने हाथ जोड़कर कहा, “गुरुदेव, अब मैं समझ गया—धैर्य रखना ही साधना का पहला फल है।”
गुरु मुस्कुराए, “बिलकुल। जो धैर्य रखता है, उसे समय स्वयं झुककर पुरस्कार देता है।”
उस दिन से शिष्य ने जल्दबाज़ी छोड़ दी। वह शांति से साधना करने लगा, और कुछ वर्षों में वह स्वयं ज्ञान का दीपक बन गया—जिसकी रोशनी ने अनेक जीवनों को आलोकित किया।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, धैर्य कोई कमजोरी नहीं, बल्कि सबसे बड़ी शक्ति है। जो समय को धैर्य से साध लेता है, सफलता स्वयं उसके चरणों में आ जाती है।