एक गाँव में संत शिष्यों को हर दीवाली पर एक नयी सीख देते थे। इस बार भी सब उत्सुक थे—“गुरुदेव, इस दीवाली हमें क्या सिखाएंगे?”
संत मुस्कुराए और बोले, “दीवाली केवल दीये जलाने का पर्व नहीं, बल्कि अंधकार मिटाने की प्रेरणा है। जो व्यापारी, सेवक या कोई भी मनुष्य अपने कार्य में अंधकार—यानी आलस्य, डर या नकारात्मक सोच—मिटा देता है, वही सच्चा दीवाली मनाता है।”
फिर संत ने एक उदाहरण दिया— “रामू एक छोटा कारीगर था। पहले वह त्योहारों के बाद दुकान बंद कर देता, यह सोचकर कि अब ग्राहक नहीं आएंगे। एक वर्ष उसने सोचा—दीवाली की तरह मैं भी अपने काम में नई रोशनी लाऊं। उसने दीपक की तरह अपनी सोच बदली, ऑनलाइन काम शुरू किया, ग्राहकों को छोटे-छोटे गिफ्ट देने लगा। कुछ ही समय में उसका छोटा व्यापार एक ब्रांड बन गया।”
संत बोले— “व्यवसाय में दीवाली का अर्थ है—पुराने अंधकार को साफ करो, नई रचनात्मकता जलाओ। हर ग्राहक में भगवान का अंश देखो, और सेवा को लाभ से पहले रखो। जब सेवा का दीप जलता है, तो लाभ अपने आप उजाला करता है।”
अंत में गुरुदेव ने कहा— “जो मनुष्य हर दिन को ‘दीवाली’ बना लेता है—यानि हर दिन कुछ अच्छा सोचता, नया करता और सेवा करता है—वही सच्चा व्यापारी, सच्चा भक्त और सच्चा सफल व्यक्ति है।”
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, दीवाली केवल घर में नहीं, बिजनेस की सोच में भी रोशनी लाने का पर्व है। नवाचार (Innovation), विश्वास (Trust) और सेवा (Service)—ये तीन दीपक हर सफल व्यवसाय के प्रतीक हैं।