एक बार संत प्रवचन दे रहे थे। सभा में एक व्यक्ति आया, जो बहुत दुखी था। उसने कहा— “गुरुदेव, मेरी पत्नी अब नहीं रही, बच्चे मुझसे दूर हैं, ना धन बचा है..और मैं अकेला पड़ गया हूँ। जब सब थे, तब मैंने कभी उनकी कदर नहीं की… अब पछतावे के सिवा कुछ नहीं बचा।”
संत जी शांत स्वर में बोले— “बेटा, एक बार एक किसान था। उसके पास एक सुंदर बगीचा था, जिसमें अमरूद, आम और नींबू के पेड़ थे। हर साल फल लगते, लेकिन वह कहता—‘अभी बहुत हैं, बाद में तोड़ लूंगा।’ समय बीतता गया, मौसम बदला, और जब वह तोड़ने गया तो पेड़ों पर कुछ भी नहीं बचा—न फल, न खुशबू। तब उसे एहसास हुआ कि ‘कभी भी देर करना, असल में खो देना होता है।’”
संत जी आगे बोले— “जीवन भी उस बगीचे जैसा है। जो रिश्ते, समय और अवसर तुम्हारे पास हैं, उनकी कदर करो। क्योंकि जब ये बीत जाते हैं, तब न वो मौसम लौटता है, न वो लोग।”
संत आगे बोले — “बेटा, जब सूरज सिर पर होता है, तो कोई उसकी गर्मी नहीं चाहता, पर जब अंधेरा आता है, तो वही सूरज याद आता है। जीवन भी ऐसा ही है — जब तक हमारे पास लोग और समय होता है, हम उसकी कदर नहीं करते।”
इसके बाद संत ने पास रखे एक मिट्टी के दीपक की ओर इशारा किया — “देखो इस दीपक को। जब तक इसमें तेल है, तब तक यह जलता है और रोशनी देता है। लेकिन अगर इसे बुझने दिया, तो फिर चाहे कितना भी पछताओ, अंधेरा ही मिलेगा।”
वह व्यक्ति रो पड़ा और बोला—“गुरुदेव, अब समझ आया कि कदर करना सिर्फ प्रेम नहीं, बल्कि जीवन की सबसे बड़ी समझ है।”
संत मुस्कुराए— “याद रखो, जो कदर करता है, वह कभी खाली नहीं रहता। क्योंकि जहाँ आदर और आभार है, वहाँ से परमात्मा भी दूर नहीं रहता।”
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, “कदर करना सीख लो, क्योंकि बीता हुआ समय और बिछड़े हुए लोग कभी वापस नहीं आते, वे केवल याद बनकर दिल में रह जाते हैं।”