हिसार

भक्त प्रहलाद से लें सीख, भक्ति वृद्धावस्था में नहीं बाल्यावस्था से ही करनी चाहिए : अत्री महाराज

‘है भव रोग मिटाने वाली, राम नाम एक सफल जड़ी, मन सीताराम रट लो घड़ी-घड़ी’

हिसार,
हमारी दिनचर्या में हम जिस प्रकार अपने कार्यों को बड़ी ही निपुणता से करते हैं। इसी प्रकार हमें अपनी दिन चर्चा में प्रभु सिमरण को भी शामिल कर उस प्रभु के नाम को जपना चाहिए जिस प्रभु ने हमें इतनी सुंदर काया दी है क्योंकि प्रभु नाम में ही असली सुख है और यह सभी रोगों की दवा है। इसलिए हमें प्रभु सिमरण के लिए अवश्य समय निकालना चाहिए।
यह बात उत्तर प्रदेश से पहुंचे श्री अत्री महाराज शुकतीर्थ ने डाबड़ा चौक स्थित एसबी रेस्तरां के प्रांगण में होली पर्व पर तीन दिवसीय श्री प्रहलाद चरित्र कथा के प्रथम दिन उपस्थित श्रद्धालुओं के बीच व्यक्त किए। भक्त प्रहलाद के चरित्र के बारे में उन्होंने बताया कि प्रहलाद भक्त जन्म से ही दिव्य थे, मां के गर्भ में ही उन्होंने श्री नारद के उपदेशों को आत्मसात कर लिया था। उनसे हमें सीखना चाहिए कि भक्ति एवं भजन वृद्धावस्था में नहीं अपितु बाल्यावस्था से ही करना चाहिए। नवधा भक्ति का उपदेश प्रहलाद ने दिया जिसमें सबसे पहली भक्ति है ‘श्रवण’ भगवान को कथा लीला को साधु-पुरुष वक्ताओं से सुनना और जीवन को धन्य बनाना। प्रहलाद जी अपने पिता को उपदेश देते हुए कहते हैं ‘तत्साधु मन्येसुरवर्य देहिनां सदा समृद्धिग्नध्यिामसद्वहात्, हित्वाआत्मपात गृहमन्धकूपं वनं गती यद्धरिमाश्रयेत्’ अर्थात पिताजी! गृहस्थ जीवन अंधकूप की तरह है, इससे खुद को बचाकर, भगवान के चरणों का आश्रय लेकर जीवन का कल्याण करो।
अत्री महाराज ने सुंदर भजनों ‘है भव रोग मिटाने वाली, राम नाम एक सफल जड़ी, मन सीताराम रट लो घड़ी-घड़ी’, ‘जिंदगी एक किराए का घर है, एक ना एक दिन बदलना पड़ेगा, मौत जब तुझको आवाज देगी, घर से बाहर निकलना पड़ेगा’, ‘मेरा आपकी कृपा से सब काम हो रहा है’, ‘काली कमली वाला दिल में समाया, रंग अब कोई चढ़ता नहीं’ से श्रद्धालुओं को झूमने पर विवश कर दिया। कथा से पूर्व प्रभु भक्त सुमित बजाज, भारत भूषा मदान, साहिल खोखर, इन्द्र बजाज व मयंक बजाज ने दीप प्रज्जवलित किया।

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