हिसार,
भारतवर्ष में ऋतु परिवर्तन के साथ ही हिंदू नववर्ष प्रारंभ होता है। चैत्र माह में शीतऋतु को विदा करते हुए और बसंत ऋतु के सुहावने परिवेश के साथ नववर्ष आता हैै। यह दिवस भारतीय इतिहास में अनेक कारणों से महत्वपूर्ण है।
यह बात श्री कृष्ण प्रणामी गौशाला खाराखेड़ी से पहुंचे स्वामी सच्चिदानंद गिरी ने अग्रोहा में गोपुत्र सेना की ओर से नव संवत्सर पर आयोजित 21 कुंडीय महायज्ञ में यज्ञमानों को आशीर्वाद देते हुए कही। भारत स्वाभिमान के जिला प्रभारी ब्रह्मा मुकेश कुमार ने इस अवसर पर कहा कि विक्रम संवत अत्यंत प्राचीन संवत है। भारत के सांस्कृतिक इतिहास की दृष्टि से सर्वाधिक लोकप्रिय राष्ट्रीय संवत विक्रम संवत ही है, हमें जन्मदिन, शादी सालगिराह पर वैदिक हवन करना चाहिए। उन्होंने बताया कि विक्रम संवत्सर निर्धारित काल और ऋतु में ही शुरू होता है। विक्रम संवत्सर का प्रारंभ बसंत ऋतु में होता है। इसका केवल धार्मिक ही नहीं वरन औषधीय महत्व भी है। कई जगह पर नीम की पत्तियां और गुड़ खाकर ‘गुडी पड़वा’ पर्व मनाया जाता है, जो आरोग्य देता है, संवत्सर आचरण की व्यापक पवित्रता पर जोर देता है। तन, मन और धन पवित्र होगा, तो पाप से बचेंगे। वेदों में लिखा है कि भगवान उसे मिलते हैं, जो सभी दूषणों से बचकर निर्मल मन वाला होता है। कोरोना जैसी महाव्याधि से बचने के सारे साधन यही बताते हैं कि लोग वेदों के विधान से संयम के साथ जिएं।
गौपुत्र सुनील क्रांतिकारी ने बताया कि इस अवसर पर गोविंद वर्मा, प्रमोद स्वामी, शिवम हिंदू, लोकराज गोदारा, आयुष चित्रा, सुशील न्योली कलां, विकास योगी, होशियार सिंह, गीना देवी, अर्जुन, गौरव, सुरजीत, संदीप, व विनय मल्होत्रा सहित अन्य भी मौजूद रहे।