आदमपुर
आदमपुर जैन भवन में मुनि विजय कुमार ने विपत्तियों से बचने के लिए अनेक बाते बताई। उन्होंने कहा कि विपत्तियों से बचने का सर्वोत्तम मार्ग संयम है। मानव में दो प्रकार की विचारधाराएं देखने को मिलती हैं एक भोगवादी व दूसरी त्यागवादी। भोगवादी विचार धारा के केन्द्र में पदार्थ मुख्य होता है। उसका मानना है यह मनुष्य जीवन बार-बार नहीं मिलने वाला है, इसलिए खूब खाओ-पीओ व मौज करो। त्यागवादी विचार धारा संयम अपनाने की बात कहती है। शरीर को पदार्थ की अपेक्षा है किन्तु वह जीवन का साध्य नहीं है, इसलिए व्यक्ति पदार्थ का उपभोग करते हुए भी उसकी सीमा रखे। भगवान महावीर ने अपने प्रवचन में संयम पर बल दिया। उन्होंने कहा कि एक गृहस्थ व्यक्ति सम्पूर्णतया संयम का पालन नहीं कर सकता किंतु यथाशक्ति संयम का अभ्यास करे। संयम का अर्थ है अल्पीकरण।
इच्छाओं का संयम भी बहुत जरूरी है। जो व्यक्ति अपनी आकांक्षाओं को बहुत ज्यादा बढ़ा लेता है, वह जैसे तैसे उनकी पूर्ति करना चाहता है, इसके लिए वह अपराध करते हुए भी नहीं संकुचाता है। जमाखोरी, मिलावट, रिश्वतखोरी आदि की अनेक घटनाएं आए दिन अखबारों में पढऩे व सुनने को मिलती रहती है। व्यक्ति यदि अपने मन पर लगाम लगाले और इच्छाओं को नियंत्रित करले तो वह बहुत सारे दोषों से अपने को बचा लेता है। वर्तमान परिस्थिति में कोविड जिस खतरनाक स्टेज पर पहुंचा है उसके पीछे भी मनुष्य का असंयम, नियमों की अवहेलना ही कारणभूत रही है, आज का मानव खुलावट पसंद करता है, उसी मनोवृत्ति का दुष्परिणाम व्यक्ति को भोगना पड़ रहा है। दूसरों पर नहीं, व्यक्ति अपने आप पर अंकुश लगाना सीखले तो वह स्वयं को बहुत सारी विपत्तियों से बचा सकता है।