हिसार

शुष्क कृषि तकनीक व संरक्षित खेती पर जोर देेने की जरूरत : कुलपति

क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र बावल के तकनीकी कार्यक्रम की समीक्षा बैठक में दिए निर्देश

हिसार,
दिनों-दिन बदलती जलवायु और पर्यावरण असंतुलन चिंता का विषय है। इन सबका कृषि उत्पादन पर गहरा असर पड़ता है। इसलिए वैज्ञानिकों को संबंधित क्षेत्र की समस्याओं के अनुसार अनुसंधान कार्य करना चाहिए। साथ ही भविष्य की योजनाएं भी उसी अनुरूप बनाई जानी चाहिए।
यह बात हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के कुलपति प्रोफेसर बीआर कम्बोज ने कही। वे क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र बावल के तकनीकी कार्यक्रम की समीक्षा बैठक में वैज्ञानिकों से ऑनलाइन माध्यम से निर्देश दे रहे थे। इस दौरान फसलों की अनुसंधान योजनाओं (खरीफ 2020) व तकनीकी कार्यक्रम (2021)को लेकर विचार-विमर्श किया गया। प्रोफेसर बी.आर. कम्बोज ने वैज्ञानिकों को सुझाव देते हुए कहा कि योजनाओं निर्माण के साथ-साथ जलवायु आधारित, शुष्क कृषि तकनीक एवं संरक्षित खेती पर अनुसंधान करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि बावल क्षेत्र प्रदेश के दक्षिणी-पश्चिम में है जहां पानी उपलब्धता कम है, ऐसे में इन क्षेत्रों में फव्वारा एवं टपका सिंचाई को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। उन्होंने वैज्ञानिकों से आह्वान किया कि वे क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र, बावल पर उच्च गुणवत्ता, रोग एवं कीट रोधी किस्मों को विकसित करें तथा किसानों को उनका बीज उपलब्ध करवायें।
कुलपति ने कहा कि किसानों द्वारा वर्तमान में फसल में दिए जाने वाले आदानों का अगली फसल में पडऩे वाले प्रभावों व फसल प्रणाली के अनुसार अनुसंधान किया जाना चाहिए। उन्होंने वैज्ञानिकों से आह्वान किया कि कृषि विज्ञान केंद्र व अनुसंधान केंद्र विश्वविद्यालय का आइना होते हैं। इसलिए वे किसानों को विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की जाने वाली उन्नत किस्मों व तकनीकों के बारे में ज्यादा से ज्यादा अवगत कराएं ताकि अधिकाधिक किसान फायदा ले सकें।
विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. एस.के. सहरावत ने ऑनलाइन माध्यम से आयोजित समीक्षा बैठक के सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया और विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र, बावल में चल रहे विभिन्न अनुसंधान कार्यों की विस्तृत जानकारी दी। क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र, बावल के नवनियुक्त क्षेत्रीय निदेशक डॉ. धर्मबीर यादव ने अनुसंधान केंद्र में जारी विभिन्न परियोजनाओं के बारे में विस्तारपूर्वक बताया व भविष्य की कार्ययोजना को लेकर चर्चा की। इस दौरान खरीफ, 2020 में किए गए शोध कार्यों की प्रगति रिपोर्ट व खरीफ, 2021 में किए जाने वाले शोध कार्यों की रूपरेखा प्रस्तुत की। साथ ही वैज्ञानिकों ने भविष्य की योजनाओं के लिए सुझाव दिए। गतवर्ष के परिणामों के अनुसार लोबिया फसल में पोटाश एवं सल्फर उर्वरक के प्रयोग की सिफारिश की गयी। इस केन्द्र पर बाजरा, ग्वार, मूंग, मूंगफली, कपास, गेंहू, सरसों, तारामीरा, चना आदि फसलों व बेर, आंवला, बेल, फालसा, अमरूद, शहतूत, अनार, लसोडा, करोंदा आदि बागवानी फसलों एवं शुष्क वृक्ष आधारित कृषि वानिकी पद्धति, संसाधन संरक्षण, जलवायु सहनशील कृषि पद्धति पर अनुसंधान कार्य हो रहा है। विभिन्न उन्नत किस्मों का बीज उपलब्ध करवाया जा रहा है। बैठक के समापन अवसर पर अतिरिक्त अनुसंधान निदेशक डॉ. नीरज कुमार व परियोजना निदेशक डॉ. सतीश खोखर ने धन्यवाद किया। बैठक में विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष और वैज्ञानिक मौजूद रहे जिन्होंने शोध के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करते हुए भविष्य के लिए बहुमूल्य सुझाव दिए।

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