कपास की फसल में मानव कठिन परिश्रम को कम करने के लिए इंजीनियरिंग हस्तक्षेप विषय पर वेबिनार आयोजित
हिसार,
कपास भारत की सबसे महत्वपूर्ण फसलों में से एक है और यह देश के सामाजिक और आर्थिक मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारत में कपास की मांग मजबूत रहने की उम्मीद है, इसलिए इस बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए उत्पादकता में सुधार की आवश्यकता है। मानव श्रम को कम करने के साथ साथ उत्पादन को बढ़ाने के लिए मशीनीकरण एक अत्यंत उपयोगी विकल्प है, जो इसकी लागत को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
यह बात हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बीआर कम्बोज ने कही। वे विश्वविद्यालय के कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय के फार्म मशीनरी एवं पावर इंजीनियरिंग विभाग द्वारा कपास की खेती में मानव श्रम को कम करने के लिए अभियांत्रिकी क्षेत्र में किए गए आविष्कार विषय पर वर्चुअल माध्यम से आयोजित वेबिनार को मुख्य अतिथि के तौर पर संबोधित कर रहे थे। महाविद्यालय के अधिष्ठात डॉ. अमरजीत कालड़ा ने मुख्य अतिथि का स्वागत करते हुए कार्यक्रम की रूपरेखा से अवगत कराया। कुलपति ने हरियाणा प्रदेश में कपास की खेती की मौजूदा स्थिति तथा इस क्षेत्र में मशीनीकरण को प्रभावित करने वाले कारकों के बारे में भी विस्तारपूर्वक जानकारी दी। उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा की फसल के अच्छे उत्पादन के लिए समय पर भूमि की तैयारी के साथ-साथ समय पर बुआई, निराई-गुड़ाई तथा कीट प्रबंधन बहुत जरूरी है जिस कार्य के लिए कई उन्नत बुआई मशीन, स्वचालित वीडर, हाई क्लियरेंस कल्टीवेटर, आधुनिक स्प्रेयर आदि उपलब्ध है। उन्होंने शोधकर्ताओं से आह्वान करते हुए कहा कि इस क्षेत्र में बहुउद्देशीय मशीनों का निर्माण करें जिनमें आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल हो जिससे किसानों को लाभ मिलेगा। भारतीय कृषि स्थितियों को ध्यान में रखते हुए ड्रोन की मदद से स्वचालित उच्च निकासी स्प्रेयर, एयर असिस्टेड स्प्रेयर, इलेक्ट्रोस्टैटिक स्प्रेयर और एरियल स्प्रेइंग जैसी पौध संरक्षण तकनीकों के विकास पर जोर दिया।
बिजाई का क्षेत्र विश्व में 37 प्रतिशत, लेकिन उपज कम
कुलपति ने कहा कि भारत को कपास की खेती के तहत सबसे बड़ा क्षेत्र होने का गौरव प्राप्त है जो कि कपास की खेती के तहत 10.5 मिलियन हेक्टेयर से 12.20 मिलियन हेक्टेयर के बीच विश्व क्षेत्र का लगभग 37 प्रतिशत है। लेकिन उपज जो वर्तमान में 501 किग्रा/हेक्टेयर है, विश्व की औसत उपज लगभग 789 किग्रा/हेक्टेयर की तुलना में अभी भी कम है। हरियाणा में, कपास लगभग 6.69 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में उगाया जाता है, जिसमें औसत उत्पादन 571 किलोग्राम/हेक्टेयर होता है।
अनुसंधान निदेशक डॉ. एसके सहरावत ने कहा कि हमें कपास की चुगाई के लिए उपलब्ध मशीनों का प्रचलन हमारे देश में बढ़ाने के लिए कपास की बौनी तथा अर्ध.बौनी किस्म विकसित करने की आवश्यकता है जिससे की इस मशीनों के परिचालन में कोई दिक्कत न आए। इस वेबिनार के प्रमुख वक्ता पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना से डॉ. मंजीत सिंह ने कपास की खेती में मशीनीकरण के लिए हो रहे अनुसंधान कार्य के साथ-साथ इस क्षेत्र में वर्तमान में उपलब्ध मशीनें तथा भविष्य में उपयोगी साबित होने वाली मशीनों के बारे में जानकारी दी। एचएयू से डॉ. विजया रानी, इंजीनियर भारत पटेल, इंजीनियर अनूप उपाध्याय तथा डॉ. प्रदीप राजन ने भी कपास की तकनीकों और उनके उपयोग पर विचार रखे। इस वेबिनार में विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता, निदेशक, विभागाध्यक्ष, सहित विभिन्न कृषि विज्ञान केन्द्रों के वैज्ञानिक, हरियाणा सरकार में कार्यरत कृषि अभियंता, विद्यार्थी व देशभर के किसानों व उद्योगपतियों ने हिस्सा लिया।