कर्मचारियों पर की गई कार्यवाही आंदोलन में घी का काम करेगी
हिसार,
केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के आह्वान पर हुई 28-29 मार्च की दो दिवसीय राष्ट्रीय हड़ताल के हिसार डिपो में पूर्ण रूप से सफल रहने से डिपो महाप्रबंधक की नींद हराम हो गई है और अब वो बौखलाहट में कर्मचारी नेताओं पर कार्यवाही कर रहे हैं। डिपो महाप्रबंधक द्वारा की गई कार्यवाही कायरतापूर्ण है और कर्मचारी इससे डरने वाले नहीं हैं।
यह बात रोडवेज कर्मचारी यूनियन के पूर्व जिला प्रधान एवं राज्य प्रभारी राजपाल नैन ने एक बयान में कही। उन्होंने कहा कि डिपो महाप्रबंधक द्वारा कर्मचारियों पर कार्यवाही करना जले पर नमक छिडक़ने जैसा है और यह कार्रवाई कर्मचारी आंदोलन में घी का काम करेगी। उन्होंने कहा कि डिपो महाप्रबंधक ट्रेड यूनियनों के संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ जाकर कार्यवाही कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कर्मचारी द्वारा किसी भी सत्ता को पलटने के लिए आंदोलन नहीं किया गया था अपितु कर्मचारियों ने श्रम कानूनों में गलत तरीके से किए गए बदलाव को लेकर आवाज उठाने का काम किया। सरकार द्वारा श्रम कानूनों में गलत तरीके से बदलाव कर कर्मचारियों के हितों पर कुठाराघात किया गया। यूनियन का काम है कर्मचारियों की आवाज को उठाना और उनके हितों की रक्षा करना लेकिन जब सरकारों द्वारा गलत तरीके से उनके अधिकारों को छीनने का प्रयास किया जाता है तो कर्मचारी व मजदूर उसके खिलाफ आंदोलन कर अपनी आवाज उठाते हैं।
राजपाल नैन ने कहा कि आंदोलन करने वाले नेताओं व कर्मचारियों का सरकारों व अधिकारियों द्वारा उत्पीडऩ कर उनकी आवाज को दबाने का प्रयास किया जाता है। उन्होंने कहा कि क्या उत्पीडऩ और आवाज दबाना ही लोकतंत्र की परिभाषा है। उन्होंने कहा कि जिस लोकतंत्र के सपने शहीदे आजम भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव सहित अन्य वीरों ने देखे थे, क्या उस लोकतंत्र के अब कोई मायने नहीं रहे। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने शांतिपूर्ण तरीके से अंग्रेजों के खिलाफ व नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने तो विदेशों में जाकर भी उत्पीडऩ व शोषण के खिलाफ एक आंदोलन खड़ा किया था। अब यह चिंतनीय है कि आज हमारी सरकार कहां खड़ी है। क्या अन्याय व शोषण के खिलाफ संवैधानिक तरीके से लड़ाई लडऩा गुनाह है। शांतिपूर्ण तरीके से हड़ताल करना, धरना व प्रदर्शन कानूनी अधिकार है, जिसकी संविधान भी इजाजत देता है।
पूर्व जिला प्रधान राजपाल नैन ने कहा कि कर्मचारियों पर कार्यवाही करने से पहले महाप्रबंधक को भी आत्मचिंतन करना चाहिए था कि हड़ताल के पीछे क्या कारण थे और पुरानी पेंशन बहाल करने, निजीकरण बंद करने, कच्चे कर्मचारियों को पक्का करने सहित जिन मुद्दों को लेकर पूरे देश संगठित, असंगठित, मजदूर व कर्मचारी वर्ग हड़ताल पर था, क्या वो मुद्दे गलत थे।