धर्म

ओशो : का सोवे दिन रैन—213

तुम्हें धन खोजना है, तो तुम अतीत में हुए धनियों का नाम नहीं लेते, तुम खुद धन की खोज में निकलते हो। वहां बेई मानी नहीं करते। धर्म की यात्रा तुम्हें करनी नहीं है, मगर दुनिया को तुम दिखाना चाहते हो कि ऐसा भी नहीं है कि मैं धार्मिक नहीं हूं। तो तुम तकरीबन निकलते हो। तुम कहते हो, मैं बुद्ध के पीछे चलूंगा, मैं धम्मपद कंठस्थ करूंगा। मैं जरथूस्त्र को मानूंगा। मैं काइस्ट की पूजा करूंगा। मैं कृष्ण केा फूल चढ़ाऊंगा। मैं मन्दिरों में झूकूंगा। मैं काबा हो जाऊंगा। गंगा – स्नान कर लूंगा।
तुम इस भांति दुनिया को भी धोखा दे लेते हो और खुद भी धोखे में पड़ जाते हो। धीरे-धीरे तुम्हें ऐसा लगता है कि अब और क्या चाहिए, धर्म तो है ही। काशी भी हो आता , गंगा स्नान भी किया, किताब भी पड़ता हूं चन्दन -तिलक भी लगाता हूं।
नहीं तुम्हें धर्म चाहिए ही नहीं, इसलिजए तुमने ये तरकीबे ईजाद ली। अगर धर्म तुम्हें चाहिए तो तुम कहोगे, मुझे अनुभव हो? मन्दिरों में जो विराजा परमात्मा है, वह मेरे काम न आएगा। मेरे भीतर कैसे विराजे? और कहते है लोग कि मेरे भीतर विराजा- और मुझे पता नहीं है- और मैं मंदिरों में खोज रहा हूं। जीवन आधार नवंबर माह प्रतियोगिता.. प्ले ग्रुप से दसवीं तक विद्यार्थी और स्कूल दोनों जीतेंगे सैंकड़ों उपहार.. अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे
नगद घर्म भीतर ले जाता है। नगद धर्म की तालाश आंख बंद करके होती है। नगद धर्म की तालाश विचार से नहीं होती है, शास्त्र से नहीं होती, सब शास्त्रों से मुक्त हो जाने से होती है। शब्द से ही मुक्त हो जाना है, तो शास्त्र में कैसे बांधोगे? शास्त्र तो शब्दों का ही जाल है। कितने ही प्यारे हो शब्द। शब्द शब्द ही है। जब तुम्हें भूख लगती है तो शब्द भोजन से पेट नहीं भरता। और जब तुम्हें प्यास लगती है तो एच.टू .ओ. का फार्मूला लेकर बैठ जाने से प्यास नहीं बूझती। और ऐसा ही नहीं कि एच.टू. ओ. का फार्मूला गलत है। वह पानी के बनाने का सूत्र है। और ऐसा भी नहीं है कि पाक-शास्त्र में जो भोजन की विधियां लिखी है वे गलत है। मगर भोजन की विधियों से क्या होगा? भोजन पकाओगे कब? चूल्हा जलाओगे कब? बर्तन चढ़ाओगे कब? और तुम्हारे भीतर सब मौजूद है भोजन पकाना हो तो अभी पक सकता है। लेकिन तुम भूखे हो और पाकशास्त्र की किताब लिए बैठे हो- कहते हो- जपुजी पढ़ रहे हो। पाक शास्त्र में तुम्हरी सब किताबे हैं। नौकरी करना चाहते है, तो यहां क्लिक करे।
और मैं यह नहीं कह रहा हूं कि किताब मत पढ़ो। मैं यह कह रहा हूं उतने भर पर रूक मत जाना। किताब पढऩे से इतना हीहो जाए कि तुम्हें याद आ जाए कि अरे, ऐसे- ऐसे सत्य भी लोगों को अनुभव हुए हैं, जो मुझे अब तक अनुभव नहीं हुए। ऐसे-ऐसे सत्य भी लोग पाकर गए हैं इस पृथ्वी पर- और मैं बिना पाए जा रहा हूं। बहुत देर हो चुकी है। अब जागने का क्षण आ गया है। ऐसे ही बहुत देर हो चुकी है।
अब खोजू , खोदूं,। अब अपने को रूपांतरित करूं। अब क्रांति से गुजरू। अब भोजन पकाऊ। लोग कहते है, जल के सरोवर है। लोग कहते हैं हम महातृप्त हो गए हैं पी कर। मैं प्यासा हूं और अब सदियों-सदियों से इतने लोगों ने कहा है कि जल मिलता है, हमे मिल गया है- बुद्ध ने कहा है, महावीर ने कहा है, तो मैं भी खोज लूं। जीवन आधार न्यूज पोर्टल को आवश्यकता है पत्रकारों की…यहां क्लिक करे और पूरी जानकारी ले..
मगर खोज से मिलता है, किसी पर विशवास कर लेने से नहीं मिलता। अनुभव ही एकमात्र द्वार है परमात्मा का। इासलिए सभी धर्म नगद होता है।
धार्मिक, जिनको तुम कहते हो, वे नगद नहीं है, यह मैं जानता हूं। वे बिलकुल उधार है। इसलिए तो दुनिया में धर्म की बातचीत बहुत होती है और धर्म की सुगंध जरा भी पता नहीं चलती। दुनियां में कितने मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, गिरजे हैं, और कहीं भी धर्म का गीत नहीं उठ रहा है। हवा में धर्म की खबर नहीं मालूम होती। पृथ्वी धर्म से शून्य मालूम होती है।
इन अधार्मिकों से- जिनकों तुम हिन्दू कहते हो, मूसलमान कहते हो, ईसाई कहते हो, -नास्तिक कहते हो बेहतर है। क्यों कहता हूं मैं नास्तिक है? कम-से कम झूठ में तो नहीं पड़ा है, जो किताबों में नहीं उलझ गया है, जो शब्दों के जाल में नही डूब गया है, उसके जागने की संभावना ज्यादा है, क्योंकि कब तक भूखा रहेगा? कब तक प्यास रहेगा? उसकी प्यास खटकेगी, गला जलेगा, भभक उठेगी। उसकी भूख उसके पेट में कडक़ेगी, उसकी आत्मा रोएगी।
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