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24 दिसंबर को क्यों याद आती है हरी मिर्च

फोर्ट कोच्चि से गुजरते हुए हमें एक चर्च दिखाई देता है, इस चर्च में पुर्तगाली यात्री वास्को डी गामा की मजार है। वास्को डी गामा ने यूरोप से भारत पहुंचने का समुद्री रास्ता भर खोजा था। केरल का कोचीन वह शहर है जहां पुर्तगालियों ने पहली व्यापारिक कोठी खोली थी। केरल के कोझीकोड ज़िले के काप्पड़ गांव से वास्को डी गामा ने पहली बार भारत की धरती पर कदम रखा था। जीवन आधार प्रतियोगिता में भाग ले और जीते नकद उपहार
वास्तव में वास्को द गामा को लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं। वह मेगास्थनीज या फाहियान की तरह महज एक यात्री नहीं था। वास्को वास्तव में एक पुर्तगाली अन्वेषक, यूरोपीय खोज युग के सबसे सफल खोजकर्ता था। वह यूरोप से भारत सीधी यात्रा करने वाले जहाजों का कमांडर था, जो केप ऑफ गुड होप, अफ्रीका के दक्षिणी कोने से होते हुए भारत के समुद्री तट तक पहुंचा था। वह 1498 में 20 मई की कालीकट पहुंचा था। नौकरी की तलाश है..तो यहां क्लिक करे।

फोर्ट कोच्चि का चर्च जहां वास्को डी गामा की मजार है।

वास्को-डी-गामा ने 8 जुलाई 1497 को भारत के लिए अपनी यात्रा शुरू की। उसकी इस यात्रा में 170 नाविकों के दल के साथ चार जहाज लिस्बन से रवाना हुए। भारत यात्रा पूरी होने पर मात्र 55 आदमी ही दो जहाजों के साथ वापिस पुर्तगाल पहुंच सके। वह मोजाम्बिक, मोम्बासा, मालिन्दी होते हुए भारत के कालीकट बंदरगाह पर पहुंचा। यहां वास्को-डी-गामा का कालीकट के राजा समुद्रीरी जिसे पुर्तगाली जामोरिन कहते थे, ने भव्य स्वागत किया।
किताब ‘इंडियाज साइंटिफिक हेरिटेज’ में सुरेश सोनी ने पुरातत्वविद डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर के हवाले से लिखा है कि वास्को डी गामा भारत एक खोजी व्यापारी की ही तरह आया था, मगर एक गुजराती व्यापारी का पीछा करते हुए वह यहां पहुंचा। डॉ. वाकणकर के मुताबिक वास्को डी गामा ने अपनी डायरी में लिखा है कि अफ्रीका के जंजीबार पहुंचने पर उसने वहां अपने जहाज से तीन गुना बड़ा जहाज देखा। एक अफ्रीकी दुभाषिए के संग ‘चंदन’ नामक इस जहाज के मालिक से मिलने गया। वह एक गुजराती व्यापारी था, जो भारत से मसालों के साथ चीड़ और टीक की लकड़ी लाता था और बदले में हीरे लेकर कोचीन जाता था। वास्को डी गामा इसी जहाज का पीछा करते हुए भारत पहुंच गया था।

वास्को-डी-गामा का इस खोज ने पश्चिमी देशों के लिए भारत के दरवाजे खोल दिए। हालांकि इस खोज से साथ वास्को-डी-गामा अपने साथ ईसाई-मुस्लिम संघर्ष भी साथ लेकर आया जिसके चलते कालीकट राज्य को पुर्तगाल के साथ सैन्य संघर्ष करना पड़ा। अपनी इस खोज पूरी होने के बाद वास्को-डी-गामा को पुर्तगाल में राजकीय सम्मान दिया गया और उसे राजकीय उपाधि भी दी गई। वास्को डी गामा जहाजी दल के साथ तीन बार भारत आया। सन् 1502 में वास्को को दुबारा भारत भेजा गया। पर अपनी तीसरी यात्रा में वह वापस नहीं लौट सका। कोच्चि में 1524 में 24 दिसंबर को उसकी मौत हो गई। जीवन आधार न्यूज पोर्टल के पत्रकार बनो और आकर्षक वेतन व अन्य सुविधा के हकदार बनो..ज्यादा जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
पुर्तगाली भारत से काली मिर्च ले गए और हरी मिर्च दे गए। वास्को डी गामा भारत से काली मिर्च की तिजारत करता था पर उस समय तक भारत में हरी मिर्च की खेती नहीं होती थी। भारत में हरी मिर्च को पुर्तगाली ही 16वीं सदी में लेकर आए। आज भारत हरी मिर्च ( मलयालम में मुलाकू ) का सबसे बडा उत्पादक भी है और खपतकर्ता भी है। 24 दिसंबर को वास्को डी गामा के साथ—साथ दक्षिण भारत में हरी मिर्च के आने के सफर को भी याद किया जाता है।

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