आदमपुर,
मनुष्य वर्ण से नही कर्म से महान बनता है वह चाहे किसी कुल में जन्म ले परन्तु कर्म करके वह महान बन सकता है निस्वार्थ भाव से जो कर्म करेगा उसकी महानता हर समय याद रखी जाएगी। उक्त विचार कुमारी सिद्धी बिश्नोई ने गांव सारंगपुर में विराट जाम्भाणी हरिकथा ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन मंगलवार को व्यक्त किए। उन्होंने कहा की जीवन में सयंम व नैतिक मूल्य के साथ ईश्वर भक्ति से सफलता प्राप्त की जा सकती है।
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मानव को संतों की तरह सयंमित जीवन से अपने को ईश्वर भक्ति में लीन कर देने की बात कही। कहा कि संगति के परिणाम स्वरूप रंग आता है और यह रंग दो प्रकार के वेदमय भगवान श्री जाम्भोजी की वाणी में कहें गए है एक है दुनिया और दूसरा है धर्म का रंग। दुनिया के रंग में चराचर जगत रंगा हुआ है। आदर्श के योग उन्हीं का जीवन है जिसका जीवन धर्म के रंग में रंग चुका हैं। यह एक ऐसा रंग है जो युक्ति के साथ मुक्ति को प्रदान करने वाला है।
उन्होंने धर्म की परिभाषा करते हुए कहा कि धर्म अर्थात् वो नियम जिनकी पालना करने से इस लोक व परलोक दोनों में जीवन का भला हो। नियमों की पालना का नाम ही धर्म की पालना हैं। जाम्भोजी ने जीवन जीने की युक्ति प्रदान की। उनके द्वारा आचार संहिता में 3 प्रकार की बातें कही गई हैं। नित्य कर्म, नैमितिक कर्म और निषेधात्मक कर्म के रूप में। प्रात:काल उठने से लेकर सांयकाल सोने पर्यन्त जिन नियमों की पालना आवश्यक कही गई है, ऐसे नियमों का नाम है नित्यकर्म। नैमितिक अर्थात् नियमित करने पर जो नियम लागू होते है उनका नाम है नैमितिक कर्म। निषेधात्मक अर्थात् जो निषेध किया है ये-ये तु है किसी भी परिस्थिति में नहीं करना है ऐसे नियमों की पालना का नाम ही निषेधात्मक कर्म है। जीवन आधार पत्रिका यानि एक जगह सभी जानकारी..व्यक्तिगत विकास के साथ—साथ पारिवारिक सुरक्षा गारंटी और मासिक आमदनी भी..अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
मानव जीवन के दोनों पक्ष चाहे व्यवहार पक्ष हो अथवा अध्यात्म पक्ष दोनों में जीवन का भला हो ऐसा, हमारा जीवन हो उसी के लिए 29 नियमों की आचार संहिता जीवन जीने की आधार बनाई गई है। समग्र जीवन का हित हो, प्राणी मात्र कल्याण हो, आदर्श जीवन जीने की कला सिखाई गई है। मानव जीवन में आने वाले त्रितापों की निवृति व परमानंद की प्राप्ति का एकमात्र साधन है और वह धर्म 29 नियमों की परिपालना के द्वारा दैहिक, देविक, भौतिक पापों की निवृति संभव है। अत: मानव मात्र को धर्म की राह का राही बनना चाहिए। क्योंकि एक आप ही दुनिया के लिए आदर्श बनने वाले है, आप से प्ररेणा लेगें। आप पथ प्रदर्शक बनेंगे। ये चमत्कार है धर्म तत्व का, सदाचार का, एक आदर्श जीवन जीने का यही सही सटीक ग्राहय तरीका है।
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