नई दिल्ली,
सुप्रीम कोर्ट ने दोषी करार दिए नेताओं के पार्टी प्रमुख बनने को लेकर चिंता जताई। कोर्ट मे कहा, ‘यह चिंता का विषय है कि दोषी करार दिया व्यक्ति खुद चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य है। ऐसा शख्स किसी राजनीतिक दल का प्रमुख है और वह चुनावों के लिए उम्मीदवारों का चयन कर रहा है। बहुत संभव है कि चुने हुए उम्मीदवारों में से कुछ जीतकर सरकार में भी शामिल हो जाएं।’
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर बेहद तल्ख टिप्पणी करते हुए केंद्र सरकार से पूछा कि अगर कोई व्यक्ति जनप्रतिनिधि कानून के तहत चुनाव नही लड़ सकता तो वो कोई भी राजनीतिक पार्टी कैसे बना सकता है? साथ ही वो पार्टी के उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के लिए कैसे चुन सकता है? कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे लोग अगर स्कूल या कोई दूसरी संस्था बनाते हैं तो कोई समस्या नहीं है, लेकिन वो एक पार्टी बना रहे हैं जो सरकार चलाएगी। यह एक गंभीर मसला है।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली तीन जजों की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी। दागी नेताओं के राजनीतिक पार्टी प्रमुख बनने के खिलाफ वकील अश्विनी उपाध्याय ने जनहित याचिका दायर की थी। इसी याचिका पर सुनावई करते हुए कोर्ट ने यह टिप्पणी की। पीआईएल पर चुनाव आयोग की तरफ से काउंसलर अमित शर्मा ने भी समर्थन दिया।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में दलील दी कि कुछ नेता जो गंभीर आपराधिक मामलों में दोषी करार दिए जाते हैं, उन पर चुनाव लगाने की पाबंदी है। इसके बावजूद ऐसे लोग पार्टी बना सकते हैं, पार्टी चला सकते हैं। याचिका में तर्क दिया गया, ‘ओम प्रकाश चौटाला, शशिकला, लालू यादव जैसे नेता दोषी करार दिए गए हैं, लेकिन फिर भी पार्टी के सर्वेसर्वा बने हुए हैं।’
शर्मा ने कोर्ट में चुनाव आयोग का पक्ष रखते हुए कहा, ‘1998 से ही आयोग इस बात की वकालत कर रहा है, लेकिन आयोग के पास किसी दोषी नेता द्वारा राजनीतिक पार्टी चलाने पर पाबंदी का सर्वाधिकार नहीं है।’ चुनाव आयोग की प्रतिबद्धता को दर्शाते हुए काउंसलर शर्मा ने यह भी कहा कि अगर संसद से जनप्रतिनिधि कानून में बदलाव कर ऐसा प्रावधान किया जाता है तो हम पूरी तरह से इसे लागू कराने की कोशिश करेंगे।