नई दिल्ली,
सुप्रीम कोर्ट ने दो सर्वेक्षणों में बाल देखभाल संस्थाओं में रह रहे बच्चों की संख्या में तकरीबन दो लाख के अंतर संबंधी अनियमितता पर मंगलवार को हैरानी जताई। न्यायालय ने कहा कि यह बेहद परेशान करने वाली बात है कि ऐसे बच्चों को महज संख्या माना जा रहा है।
शीर्ष अदालत उस वक्त हतप्रभ रह गई जब उसे बताया गया कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के निर्देश पर 2016-17 में कराए गए सर्वेक्षण के अनुसार बाल देखभाल संस्थाओं (सीसीआई) में रहने वाले बच्चों की संख्या तकरीबन 4.73 लाख थी जबकि सरकार ने इस साल मार्च में जो आंकड़ा अदालत में दाखिल किया है उसमें उनकी संख्या 2.61 लाख बताई गई है।
न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, यह स्पष्ट नहीं है कि शेष तकरीबन दो लाख बच्चों का क्या हुआ। ये बच्चे आंकड़ों से गायब प्रतीत हो रहे हैं। पीठ ने केंद्र से कहा, इन दो लाख के अलावा देश में कितने बच्चे लापता हैं। पीठ ने कहा कि अगर कानून के प्रावधानों को अक्षरश: लागू किया गया होता तो मुजफ्फरपुर और देवरिया में जिस तरह की बाल उत्पीड़न की घटनाएं हुईं, वो नहीं होतीं।
अधिक धन हासिल करने के लिए गलत आंकड़े देने की संभावना
पीठ में न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता भी शामिल हैं। पीठ ने कहा कि इस बात की संभावना है कि सीसीआई ने राज्य सरकारों को बढ़ाकर आंकड़े दिए हों ताकि अधिक धन हासिल कर सकें। इस गंभीर मुद्दे की जांच किए जाने की आवश्यकता है।
राज्यों से आंकड़ों का मिलान करेंगे
केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ने न्यायालय से कहा कि सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा सीसीआई में रह रहे बच्चों की संख्या के बारे में आंकड़ों का संकलन किया था और इस संबंध में मार्च में रिपोर्ट दाखिल की थी। केंद्र के वकील ने पीठ से कहा, हम राज्यों द्वारा प्रदान किए गए आंकड़ों पर भरोसा करते हैं। राज्यों को बताना है कि इतना अंतर क्यों है। हम राज्यों से संपर्क करेंगे ताकि जान सकें कि कौन सा आंकड़ा सही है। उन्होंने कहा, अगर ये बच्चे गुमशुदा हैं तो यह गंभीर चिंता का विषय है और यह बेहद खौफनाक है।