हिसार,
हरियाणा रोडवेज कर्मचारी तालमेल कमेटी ने दावा किया है कि विभाग के निजीकरण के खिलाफ पिछले 8 दिनों से जारी रोडवेज हड़ताल अब जन आंदोलन का रूप ले चुकी है। प्रदेशभर में हड़ताल को कर्मचारी संगठनों, छात्र संगठनों, जन संगठनों एवं आम जनता का भरपूर सहयोग मिल रहा है लेकिन सरकार अपनी हठधर्मिता से बाज नहीं आ रही है। तालमेल कमेटी ने यह भी आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री, मंत्री व विभाग के अधिकारी विभाग में घाटे का नाम लेकर जनता को गुमराह करने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन उनका यह दावा बिल्कुल निराधार है कि विभाग घाटे में हैं।
एक संयुक्त बयान में तालमेल कमेटी के वरिष्ठ सदस्य दलबीर किरमारा, हरिनारायण शर्मा, इन्द्र सिंह बधाना, अनूप सहरावत, जयभगवान कादियान, सरबत सिंह पूनिया, पहल सिंह तंवर, ओमप्रकाश ग्रेवाल व रमेश सैनी ने कहा कि रविवार को विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव धनपत सिंह, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव आरके खुल्लर, महानिदेशक पंकज अग्रवाल एवं अन्य अधिकारियों के साथ मीडिया के सामने हुई रोडवेज यूनियनों की बातचीत में रखे गये तर्कों से यह साफ जाहिर हो रहा था कि 720 प्राइवेट बसें राजनीतिक प्रभावशाली लोगों की ही है, जिनको चलाने के लिए सरकार ने पूरे प्रदेश को पिछले एक सप्ताह से परेशानी में डाल रखा है। मुख्यमंत्री द्वारा यह कहना कि 720 प्राइवेट बसें ठेके पर लेकर विभाग का घाटा पूरा किया जाएगा, यह बयान कर्मचारियों ही नहीं बल्कि आम जनता के गले भी नहीं उतर रहा है।
मुख्यमंत्री व उच्चाधिकारी बताएं कि इससे घाटा कैसे पूरा होगा क्योंकि पड़ौसी राज्यों पंजाब, यूपी, राजस्थान व मध्यप्रदेश में भी किलोमीटर स्कीम लागू की गई थी। राजस्थान में चार वर्ष पहले जहां 2400 करोड़ का घाटा था, किलोमीटर स्कीम शुरू होने के बाद यह घाटा 4 हजार करोड़ को पार कर गया। इसके अलावा वहां न ही नई बसें आई और न ही कर्मचारियों की भर्ती हुई। यही हाल पंजाब रोडवेज का है वहीं मध्यप्रदेश परिवहन विभाग को तो वर्ष 2010 में पूर्ण रूप से बंद करना पड़ा। उन्होंने कहा कि हरियाणा रोडवेज ही ऐसा विभाग है जो 42 श्रेणियों को निशुल्क एवं मामूली शुल्क पर यात्रा सुविधा देते हुए कम खर्च व न्यूनतम दुर्घटना में देश में एक नंबर पर है। रोडवेज कर्मचारी अपनी मेहनत से सींचे गए इस विभाग को किसी कीमत पर बंद नहीं होने देंगे, चाहे इसके लिए उन्हें कितनी बड़ी कुर्बानी क्यों न देनी पड़े। उन्होंने कहा कि अब भी एकमात्रा रास्ता बातचीत ही है, जिसके तहत सरकार निजी बसों को चलाने का इरादा छोड़कर परिवहन बेड़े में साधारण बसें शामिल करें।