55 बार कर चुके हैं रक्तदान और मरणोपरांत आंखें व शरीर दान का ले चुके हैं निर्णय
हिसार,
वर्तमान दौर में परिस्थितियां इंसान के बिल्कुल भी अनुकूल नहीं है। देश एक कोरोना वायरस नामक वैश्विक महामारी से जूझ रहा है। सभी लोग अपने-अपने तरीके से काम कर रहे हैं और आपसी मतभेद भुलाकर इस महामारी से लड़ रहे हैं लेकिन यह खतरनाक महामारी विकराल रूप लेती जा रही है।
सामाजिक कार्यों के अनेक अनेक रुप है। सरदानन्द राजली एक ऐसा नौजवान है जो समाज में जागरुकता फैलाने के लिए अनेक सामाजिक कार्य कर रहा है। गांव राजली के इस साधारण से युवक ने ऐसे समय में ऐसा निर्णय लिया है कि जो मानवहित के लिए बहुत ही जरूरी है। ऐसी आपदा की घड़ी में जब सारा विश्व कोरोना नाम के वायरस की चपेट और आतंक के साए में हैं और इस से निपटने के तमाम प्रयास किए जा रहे हैं, पूरी दुनिया में हाहाकार मची हुई है तो ऐसे में सरदानन्द राजली ने कोरोना वायरस को खत्म करने वाली दवाई में प्रयोग के लिए प्रयुक्त होने वाले मानव शरीर के लिए अपना शरीर देने की घोषणा की हैं।
राजली ने कोरोना के इस आपदा भरे दौर में अपनी भूमिका निभाते हुए हिम्मत दिखाई हैं। देश में ऐसे भी बहुत से युवा हैं जो अपने तक सीमित ना रह कर सामाज और मानवहित के लिए सोचते हैं। देश और इंसानियत की खातिर कुछ भी करने का जज्बा रखते हैं। कोरोना वायरस जैसी महामारी से लडऩे और मानवता के लिए जिसने स्वेच्छा से अपना शरीर कोरोना वायरस की दवाई के लिए प्रयोग में देने की घोषणा की है। उनका कहना है कि इस महामारी के खात्मे के लिए हमारे में से ही किसी ना किसी व्यक्ति को कुर्बानी तो देनी ही पड़ेगी, ताकि शोधकर्ता रिसर्च करके इस खतरनाक महामारी का इलाज एवं दवाई खोज सके। लाजमी है ऐसे वायरस से निपटने के लिए रिसर्च के लिए किसी मानव शरीर का इस्तेमाल किया जाएगा। उस समय प्रयोग के लिए किसी स्वस्थ व्यक्ति के शरीर की आवश्यकता पड़ती हैं। इस स्वस्थ शरीर को पहले वायरस से इन्फेक्टेड किया जाता हैं, उसके बाद दवाई निर्माण की तमाम सम्भावनाओं पर रिसर्च की जाती हैं। अगर प्रयोग असफल होता हैं और दवाई नहीं बन पाती हैं तो ऐसे में अपना शरीर प्रयोग में देने वाले व्यक्ति की मौत भी हो सकती हैं। सरदानन्द राजली ने ऐसी घोषणा करके साबित किया हैं कि समाजसेवा के साथ में मानवीय सरोकारों के लिए अपना शरीर देने को तैयार हैं ताकि पूरी मानव जाति को बचाया जा सके और हमारे देश के डॉक्टर इस महामारी की दवा खोज सके। इसके साथ ही सरदानन्द कहते हैं कि मैं रहूं या ना रहूं मेरा देश सलामत रहना चाहिए, जीतेंगे हम, हारेगा कोरोना।