हिसार

परिवारों में बढ़ रही संवादहीनता, पिता— पुत्र 6—6 महीने बात नहीं करते

वानप्रस्थ की गोष्ठी में सामाजिक तनावों पर चर्चा, अब घर पक्के हुए, पर मन कच्चे हो गए

हिसार,
हरियाणा में उभरते सामाजिक तनाव विषय पर चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय सिरसा में इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो. महेंद्र सिंह ने कहा कि प्रदेश में आर्थिक विकास के अनुरूप सामाजिक विकास न होने के कारण अनेक सामाजिक तनाव उभर कर सामने आ रहे हैं जिन्हें सही स्वरूप में समझने और फिर एक बहु आयामी सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलन चलाए जाने की आवश्यकता है।
वानप्रस्थ सीनियर सिटीजन क्लब द्वारा आयोजित वेब गोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में उन्होंने कहा कि दलित व गैर दलित जातियों के टकराव, संयुक्त परिवारों का टूटना, पीढ़ियों में बढ़ती संवादहीनता, नशे और दिखावे का चलन, कन्या भ्रूण हत्या, झूठे सम्मान के लिए प्रेमी जोड़ों की हत्या, लोकसंगीत में अश्लीलता तथा हिंसक आंदोलन बढ़ते सामाजिक तनाव के उदाहरण हैं।
परिवारों में बढ़ती संवादहीनता को लेकर अपने एक सर्वेक्षण का उल्लेख करते हुए प्रो. महेंद्र सिंह ने कहा कि 42 प्रतिशत विद्यार्थियों का कहना था कि उनकी 6—6 महीने तक अपने पिता से कोई बात नहीं होती। इसके अलावा 47 प्रतिशत ने कहा कि वे पैसे की ज़रूरत को लेकर कभी—कभार ही अपने पिता से बात करते हैं। अन्य 11 प्रतिशत ने माना कि उनकी पिता से दुख सुख की बात होती रहती है।
“अब चाचा, ताऊ और परिवार से संस्कार और ज्ञान नहीं मिलता, स्मार्टफोन से मिलता है। युवा के सामने अब कोई रोल मॉडल नहीं रहे जो उसे प्रेरित कर सकें। आजकल तो पिता पुत्र से डरता है और अध्यापक विद्यार्थी से डरता है।” उन्होंने कहा कि “पहले घर कच्चे थे पर मन पक्के थे, अब घर पक्के हैं पर मन कच्चे हो गए हैं”।
प्रो. महेंद्र सिंह ने कहा कि प्रदेश में अभी तक ऐसा कोई सांस्कृतिक केंद्र भी नहीं बना जो प्रदेश के लोकसंगीत और संस्कृति को संभाल कर उसका विकास करे और युवाओं को इस धरोहर की तरफ मोड़ सके। हरियाणा के समाज के लिए यह संकट की घड़ी है जिस पर सभी का ध्यान जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वानप्रस्थ संस्था ने सामाजिक तनाव पर विचार विमर्श की पहल की है जो और व्यापक स्तर पर होनी चाहिए। तनाव के विभिन्न पहलुओं की पहचान कर उनके निवारण का समुचित कार्यक्रम तैयार किया जाए तथा नई पीढ़ी को संभालने का आंदोलन चलाया जाए। स्थिति अभी संभाली जा सकती है।
गोष्ठी में भाग लेते हुए दूरदर्शन के पूर्व समाचार निदेशक अजीत सिंह ने कहा कि प्रजातंत्र में चुनाव ज़रूरी हैं पर द्वंद के कारण सामाजिक समरसता को नुक्सान भी पहुंचता है। हालांकि राजनैतिक दल जाति विशेष की राजनीति भी करते हैं पर कोई भी जाति अन्य जातियों के सहयोग के बिना सत्ता में नहीं आ सकती। इस तरह जातियों में संवाद व सहयोग भी बनता है।
बिजली निगम के पूर्व प्रमुख संपर्क अधिकारी डी.पी. ढुल ने गोष्ठी का संचालन करते हुए कहा कि पुराने ज़माने में खाप सामाजिक समरसता बनाती थी पर आजकल वे भी सामयिक मुद्दों की बजाय रूढ़िवादी मुद्दे उठा लेती हैं जिन्हें बाहर के प्रदेशों में हरियाणा के सामाजिक पिछड़ेपन की निशानी समझा जाता है।
प्रो. जे. के. डांग, प्रो. सतीश कालरा व प्रो. स्वराज कुमारी ने भी दो घंटे चली चर्चा में भाग लिया। वानप्रस्थ के महासचिव डॉ. जे.के. डांग ने बताया कि संस्था की अगली वेब गोष्ठी 11 नवंबर को दिन में 4.30 बजे शुरू होगी जिसमें प्रो. अपर्णा विवेक इस वर्ष की साहित्य का नोबेल पुरुस्कार विजेता कवित्री लुईस ग्लूक पर व्याख्यान देंगी। गोष्ठी का संचालन ऑस्ट्रेलिया से प्रो. अरुणा डांग करेंगी जो वहां अंग्रेज़ी की टीचर हैं। कुरुक्षेत्र से प्रो. दिनेश दधीचि भी गोष्ठी में शामिल रहेंगे। नोबेल पुरुस्कारों पर भाषण माला की सीरीज में वानप्रस्थ संस्था में गत दिवस शांति पुरस्कार व चिकित्सा पुरस्कार पर चर्चा हो चुकी है।

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