एक बार एक गाँव में एक संत पधारे। दीपावली का समय था, चारों ओर सफ़ाई, रंगोली और दीपों की रौनक थी। गाँववाले उनके पास आए और बोले — “गुरुदेव, दीपावली तो सब जानते हैं, पर ये ‘छोटी दिवाली’ का क्या महत्व है?”
संत मुस्कुराए और बोले — “बेटा, छोटी दिवाली को ‘नरक चतुर्दशी’ भी कहते हैं। यह केवल दीप जलाने का दिन नहीं, बल्कि अंधकार मिटाने का अभ्यास है। दीपावली के एक दिन पहले जब हम घर के कोने-कोने को साफ़ करते हैं, तो दरअसल हम मन के अंधकार को भी हटाने की तैयारी करते हैं।”
फिर संत ने एक छोटी कथा सुनाई— एक बार यमराज ने एक किसान के द्वार पर दस्तक दी। किसान भयभीत होकर बोला, “प्रभु! अभी मत ले जाइए, मुझे बहुत काम हैं।”
यमराज बोले, “तेरा समय पूरा हुआ है, पर आज ‘नरक चतुर्दशी’ है। जो आज अपने मन और कर्मों की सफाई करता है, उसे नरक से मुक्ति मिलती है।”
किसान ने पश्चाताप किया, अपने अपराधों को स्वीकार किया और प्रण लिया कि आगे सदा सत्य और सेवा के मार्ग पर चलेगा।
यमराज प्रसन्न हुए और बोले — “तेरा जीवन अब पुण्य मार्ग पर बढ़ेगा।”
संत बोले — “छोटी दिवाली का यही संदेश है — अपने अंदर के अंधकार को पहचानो और उसे मिटाओ। दीपक केवल घर को नहीं, आत्मा को भी रोशन करें।”
अंत में संत ने कहा — “दीपावली से पहले मन का दीप जलाओ, तभी सच्ची दीपावली का प्रकाश मिलेगा।”
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, छोटी दिवाली आत्मशुद्धि का दिन है — अपने अंदर के लोभ, क्रोध, द्वेष को साफ़ कर प्रेम, प्रकाश और करुणा से जीवन को उजाला देना ही इसका वास्तविक महत्व है।