हिसार

संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना समय की मांग : कुलपति

एचएयू में कृषि विज्ञान केंद्रों की वर्चुअल जोनल वार्षिक समीक्षा बैठक आयोजित

हिसार,
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बीआर कम्बोज ने कहा है कि संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकियों (आरसीटी) पर ध्यान देने की सख्त जरूरत है, क्योंकि मौजूदा समय में इन तकनीकों की बहुत अधिक जरूरत है। ये खेती की लागत को कम करने, मिट्टी के कार्बन निर्माण में सुधार, पानी के बहाव को कम करने और मिट्टी के कटाव आदि में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
कुलपति आज एचएयू में ऑनलाइन माध्यम से कृषि विज्ञान केंद्रों की वर्चुअल जोनल वार्षिक समीक्षा बैठक को संबोधित कर रहे थे। बैठक में अटारी जोधपुर, जोन-2 के तहत आने वाले हरियाणा, राजस्थान व दिल्ली के कृषि विज्ञान केंद्रों के मुख्य वैज्ञानिक शामिल हुए। कुलपति प्रोफेसर बीआर कम्बोज ने कहा कि किसानों को जीरो टिलेज, लेजर लेवलिंग, बेड प्लांटिंग, ड्रिप और स्प्रिंग इरीगेशन जैसी तकनीकों को अपनाने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। इसके अलावा लेजर लैंड लेवलर, मल्टी क्रॉप प्लांटर्स, स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम, टर्बो सीडर, रीपर, स्ट्रॉ स्प्रेडर अटैचमेंट, बाइंडर, हैप्पी सीडर आदि को बढ़ावा देना चाहिए। उन्होंने कहा कि पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिए एकीकृत खरपतवार प्रबंधन और कृषि अभियांत्रिकी उपायों के साथ-साथ शाकनाशियों का आवश्यकता आधारित उपयोग और एकीकृत रोग प्रबंधन की आवश्यकता है। विश्वविद्यालय के विस्तार वैज्ञानिकों का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि भविष्य में भी वे विश्वविद्यालय द्वारा विकसित तकनीकों एवं विभिन्न फसलों की उन्नत किस्मों की जानकारी किसानों तक ज्यादा से ज्यादा पहुंचाएं ताकि किसानों का भला हो सके और विश्वविद्यालय अपने किसान हितैषी लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ता रहे। इसके लिए प्रदेश के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, बागवानी विभाग, पशुपालन विभाग, मछली पालन विभाग, कृभको, इफको आदि के साथ आपसी तालमेल करने पर जोर दिया।
जलवायु परिवर्तन खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा
कुलपति ने कहा कि जलवायु परिवर्तन को अब दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा के लिए सबसे गंभीर खतरे के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें भारत को दुनिया के सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में से एक माना जाता है। जलवायु परिवर्तन का भारत में कृषि उत्पादन पर कृषि फसलों, मिट्टी, पशुधन और कीटों पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभावों के माध्यम से उष्णकटिबंधीय जलवायु होने पर काफी प्रभाव पड़ता है। हमें जलवायु अनुकूल विकास रणनीति तैयार करने के लिए सभी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पहलों के साथ सक्रिय रूप से जुडऩा होगा। साथ ही फसलों की समय पर बुवाई, जैविक खाद के बढ़ते उपयोग के साथ मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का संतुलित उपयोग, स्थायी फसल उत्पादन के लिए इन-सीटू फसल अवशेष प्रबंधन एवं जैव-उर्वरक को सुनिश्चित करना होगा। विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. रामनिवास ने बताया कि इस समीक्षा बैठक का आयोजन निदेशालय, अटारी जोधपुर, जोन-2 व हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। उन्होंने बताया कि इस दौरान वैज्ञानिकों ने अपने-अपने केंद्रों की वर्ष 2020-21 के दौरान सालभर आयोजित की गई विस्तार गतिविधियों के बारे में समीक्षा रिपोर्ट प्रस्तुत की।

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