मशरूम उत्पादन तकनीक विषय पर तीन दिवसीय ऑनलाइन प्रशिक्षण में बागवानी फसल विविधिकरण में मशरूम उत्पादन की सलाह
हिसार,
बागवानी में विविधिकरण के रूप मेंं मशरूम एक ऐसा व्यवसाय है जो कम पैसे से शुरू किया जा सकता है और सफल होने पर मशरूम उत्पादन को किसी भी स्तर पर बढ़ाया जा सकता हैं।
यह बात हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के कुलपति प्रोफेसर बीआर कम्बोज ने कही। वे विश्वविद्यालय के सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण एवं शिक्षण संस्थान के वैज्ञानिकों को विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण आयोजित करने को लेकर निर्देश दे रहे थे। उन्होंने बताया कि किसान यहां से तकनीकी ज्ञान लेकर खुंब उत्पादन का व्यवसाय शुरू कर सकते हैं और अधिक लाभ अर्जित कर सकते हैं। यह बेरोजगार युवक-युवतियों के लिए आय का अच्छा साधन है जिसे अपनाकर स्वावलंबी बना जा सकता है। इस व्यवसाय के लिए खेतों की आवश्यकता नहीं होती और भूमिहीन व्यक्ति भी इसका व्यवसाय अपना सकता है। मशरूम एक शाकाहारी खाद्य पदार्थ है जिसमें प्रोटीन, अमीनो एसिड, विटामिन, खनिज व लवण प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसमें वसा की मात्रा कम पाई जाती है जिसकी वजह से ह्दय रोगियों के लिए इसका सेवन लाभदायक होता है। खाने में स्वादिष्ट होने के साथ-साथ सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद है व पोषण से भरपूर है। इसलिए मौजूदा समय में मशरूम को एक टेबल फूड बनाने की जरूरत है, ताकि घर-घर तक इसका उपयोग हो सके।
देशभर से 77 प्रतिभागी हुए शामिल
संस्थान के सह-निदेशक (प्रशिक्षण)डॉ. अशोक गोदारा ने बताया कि संस्थान की ओर से मशरूम उत्पादन तकनीक विषय पर तीन दिवसीय ऑनलाइन प्रशिक्षण का आयोजन किया गया है। इस प्रशिक्षण में हरियाणा के विभिन्न जिलों के अलावा राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश सहित देशभर के 77 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। प्रतिभागियों को बागवानी में फसल विविधिकरण के लिए मशरूम उत्पादन की सलाह दी। संस्थान के सहायक निदेशक डॉ. सतीश कुमार ने प्रतिभागियों से आह्वान किया कि वे वर्तमान समय में विकसित नई प्रजातियों की जानकारी हासिल कर इस क्षेत्र में व्यवसाय स्थापित करें। सारा साल विभिन्न मशरूमों जैसे सफेद बटन मशरूम, ढींगरी मशरूम, मिल्की मशरूम, धान के पुआल की मशरूम आदि को उगाकर आय प्राप्त की जा सकती है। डॉ. संदीप भाकर ने फसल अवशेष का उचित प्रबंध करने की आवश्यकता पर विशेष बल दिया। पराली को न जलाकर इसका उपयोग मशरूम के लिए कम्पोस्ट बनाने में उपयोग किया जा सकता है। इससे वातावरण दूषित नहीं होगा, मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी, मिट्टी में सूक्ष्म जीवी नष्ट नही होगें। पराली न जलाने के लिए इसे एक सामाजिक अभियान के रूप में ग्रामीण क्षेत्र से जुड़े सभी वर्गों को इसमें योगदान देना होगा।
संस्थान के सहायक निदेशक डॉ. सुरेंद्र सिंह ने बताया कि मशरूम प्रोसेसिंग करके इसका अचार, बिस्कुट, मुरब्बा, पापड़ आदि उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं। डॉ. राकेश कुमार चुघ ने ढींगरी उत्पादन तकनीक व कीड़ा जड़ी खुंबी उत्पादन पर विस्तार से बताया। पौध रोग विभाग से डॉ. मनमोहन सिंह ने मशरूम में लगने वाली बीमारियों की जानकारी दी। डॉ. जगदीप मेहरा व डॉ. निर्मल कुमार ने भी मशरूम उत्पादन को लेकर विचार रखे। डॉ. डीके शर्मा ने मशरूम उत्पादन में प्रयुक्त होने वाली तकनीकों के बारे में बताया।