हिसार

स्वतंत्रता सेनानी लाला हुकुमचंद जैन की शहादत को बच्चा-बच्चा जाने : विपिन गोयल

हिसार,
स्वतंत्रता सेनानी लाला हुकुमचंद जैन ने एक समृद्ध परिवार से होने के बावजूद देश की आजादी के लिए अंग्रेजों से लोहा लेते हुए अपना तन-मन-धन सब न्योछावर कर दिया था। ऐसे वीर शहीदों के बारे में हमारे देश के बच्चे-बच्चे को पता होना चाहिए। फिर इसके लिए चाहे सरकारों को इनकी जीवनी पाठ्यक्रमों में शामिल करनी हो या इन महापुरुषों की जयंती और शहीदी दिवसों पर समाज को मजमे लगाने हों सभी रास्ते इख्तियार किये जाने चाहिए।
यह बात अखिल भारतीय अग्रवाल सम्मेलन के प्रचार मंत्री एवं प्रदेश प्रवक्ता विपिन गोयल ने लाला हुकुमचंद जैन के शहीदी दिवस पर हांसी में उनकी प्रतिमा पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कही। विपिन गोयल ने बताया कि लाला हुकुमचंद जैन का जन्म 1816 में हांसी के प्रसिद्ध कानूनगो परिवार में दुनीचंद जैन के घर हुआ था। लाला हुकुमचंद जैन को गणित और फारसी में महारत हासिल थी जिसके बल पर इन्होंने मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के दरबार में काफी उच्च पद प्राप्त किया था लेकिन अंग्रेजों के जबरदस्ती सत्ता पे काबिज होने की घटना से इनके अंदर जबरदस्त देशभक्ति और क्रांति की भावना का आगाज हुआ। तांत्या टोपे सहित अन्य राष्ट्रीय स्तर के क्रांतिकारियों व सैनिकों के साथ मिलकर इन्होंने कई बार अंग्रेजों को लोहे के चने चबवाये जिसके चलते इन्हें 19 जनवरी 1858 को मात्र 13 वर्षीय भतीजे फकीरचंद व इनके साथी मिर्जा मुनीर बेग को लाला हुकुमचंद के मकान के सामने ही फांसी पर लटका दिया गया था। सम्मेलन के प्रवक्ता ने संगठन की ओर से भी महान स्वतन्त्रता सेनानी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए लाला हुकुमचंद जैन को समाज का प्रेरणास्रोत बताया।

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