हिसार

साधनों में नहीं साधना में मिलेगा सुख, ईश्वर भक्ति जीवन का परम लक्ष्य : स्वामी सच्चिदानंद

भक्ति से पहले भगवान को जानना बहुत जरूरी : स्वामी सच्चिदानंद

हिसार,
आर्य समाज नागोरी गेट की ओर से आयोजित श्रावणी उपाकर्म पर्व वेद प्रचार सप्ताह के तीसरे दिन का शुभारंभ प्रात: हवन यज्ञ से हुआ। यज्ञ के पुरोहित कर्मवीर शास्त्री ने हवन संपन्न करवाया। आज यज्ञ के यजमान मुनिराम आर्य सपत्नीक, महेंद्र सिंह आर्य सपत्नीक, धर्मपाल आर्य, सुकामा आर्या व ईश्वर आर्य थे।
वेद प्रचार सप्ताह में पहुंचे गणमान्य व्यक्तियों एवं जगन्नाथ सीनियर सैकेंडरी विद्यालय की छात्राएं तथा सीएवी शिक्षण संस्थान के विद्यार्थी तथा उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए रिवालाधाम जयपुर से पहुंचे स्वामी सच्चिदानंद महाराज ने बताया कि सुख-साधनों में नहीं, साधना में है। अत: ईश्वर भक्ति ही जीवन का परम लक्ष्य होना चाहिए। उन्होंने इस प्रकरण को विस्तार देते हुए बताया कि संसार का प्रत्येक प्राणी सुख चाहता है। जीवन में व्यक्ति जो कर्म करता है, उसके पीछे उसकी कामना सुख प्राप्ति ही होती है, लेकिन संसार में व्यक्ति ये भूल जाता है कि जितना चीजों के पीछे वह भाग रहा है, वो उसे सुखी नहीं कर सकतीं। सुख साधनों में नहीं बल्कि साधना में है। साधना ही हमारे जीवन का मुख्य ध्येय होनी चाहिए। मनुष्य जन्म पाकर साधना के द्वारा उस परम तत्व तक नहीं पहुुंच पाए तो समझना जीवन व्यर्थ ही निकल गया। भगवत् तत्व की प्राप्ति ही जीवन का उद्देश्य है, और भगवत् शरण में ही सुख की प्राप्ति हो सकती है। संसार के पदार्थों में तो सुख का थोड़ा आभास सा होता है, लेकिन पूर्णानंद तो सच्चिदानंदघन की शरण में ही मिलेगा। स्वामी महाराज ने बताया कि ईश्वर के सही स्वरूप को समझकर की गई भक्ति ही फलदायक होती है, आज समाज में भक्ति के नाम पर भ्रांति ज्यादा है। महर्षि दयानंद सरस्वती ने वेदों के आधार पर ईश्वर और उसकी भक्ति का सही स्वरूप समाज के सामने रखा है। जीवन के उत्थान के लिए हमें उसे समझना चाहिए क्योंकि भक्ति से पहले भगवान को जानना बहुत जरूरी होता है।
प्रसिद्ध भजनोपदेशिका अंजलि आर्या ने अपने संबोधन में कहा कि मानव कल्याण के लिए सृष्टि की आदि में ही परमपिता परमात्मा ने वेद का ज्ञान प्रदान किया जिसके आधार पर हमारे ऋषियों ने समस्त गतिविधियों को आगे बढ़ाया। इसी पवित्र वेद ज्ञान के आधार पर जब तक हम चलते रहे तब तक हमारा देश विश्व गुरु, धर्मगुरु आदि-आदि विशेषताओं से जाना गया। सारे भूमंडल पर एकछत्र चक्रवर्ती साम्राज्य आर्यों का रहा। विदेशी यहां पर आते तो ऋषियों के चरणों में शीश झुकाते। पर वर्तमान में आज वेद रूपी संविधान की धज्जियां स्वयं कुछ तथाकथित धर्माचार्य ही उड़ा रहे हैं। जो वेद मंत्रों का अनर्थ करके अनर्गल बातों का प्रचार कर रहे हैं। प्रसिद्ध मधुर गायक राजकुमार आर्य ने आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद का गुणगान करते हुए गीत गाया ‘ऐ दयानंद तेरा जवाब नहीं, कोई तुझसा नहीं जमाने में।’ मंच संचालन स्वामी ब्रह्मानंद ने किया।
कार्यक्रम में मेजर करतार सिंह, हरिसिंह सैनी, ईश्वर सिंह, रामलाल पाहूजा, रामसहाय चुघ, महावीर सिंह, दलबीर आर्य, देवेंद्र सैनी, राधेश्याम आर्य, नरेंद्र मिगलानी, मानसिंह पाठक, गीता मित्तल, धर्मपाल सोनी, रामकुमार आर्य, दीपकुमार आर्य, ईश आर्य, मोहन सिंह सैनी, सत्यप्रकाश आर्य, शशी आर्या, सुरेंद्र रावल, गोपीचंद अर्या, नंदलाल चोपड़ा, सतेंद्र आर्य, बलराज मलिक, श्याम सुंदर व कुलदीप ग्रोवर आदि उपस्थित रहे।

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